जिंदगी सही ढंग से होश से चलती है। होश यानी अवेयरनेस। होश के हत्यारे का नाम है नशा। पिछले दिनों एक खबर चली कि विगत वर्षों में दिवंगत हुए एक अभिनेता को दवा के नाम पर नशा दिया गया। अब यह तो कानून तय करेगा कि देने वाले या लेने वाले में कौन-कितना दोषी है, पर हम भारतीय समाज के लोगों को इस पर गहरा चिंतन करना चाहिए, क्योंकि हमारी नई पीढ़ी के कुछ भटके हुए बच्चे नशे के गलियारों में भविष्य का उजियारा ढूंढने निकले हुए हैं।
पहले तो नशा भी छुपकर किया जाता था, लेकिन अब कई युवाओं का मानना है कि जो छुपकर किया जाए, वह नशा ही क्या? खुलेआम नशा करने का मजा ही अलग है। कुल मिलाकर नशा एक नासमझी है। दवा और नशे का फर्क यदि समझ न सकें तो यह गलती हमारी स्वयं की है।
दवा में नशा हो सकता है, पर नशा कभी दवा नहीं बन सकता। जब हम होश में रहते हैं तो जीवन हमारे पीछे चलता है, और जब नशे में होते हैं तो हम जीवन के पीछे चल रहे होते हैं। याद रखिए, नशे का जीवन बर्बादी की मंजिल का सबसे आसान रास्ता है।
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