भोजन एक लंबी प्रक्रिया से गुजरता है। इसलिए हम अपने खाना खाने की क्रिया के प्रति अत्यधिक गंभीर रहें। पहली बात भोजन मिल जाना, फिर खा लेना, फिर पचा लेना और पचा हुआ भोजन शरीर के अंगों को ठीक से लग जाए, उसके बाद अंत में ठीक से विसर्जित हो जाए- इतने चरण हैं भोजन के।
पिछले दिनों एक कथा के बाद मैंने देखा कि कुछ भक्तों ने अपने भोजन की थाली को डस्टबिन बनाकर रखा हुआ था। कुछ लोगों के जीवन में भोजन का लगाव होता है तो वो जूठा छोड़ते हैं। कुछ लोगों के लिए भोजन स्वभाव होता है, वो उसे ठीक से पचा लेते हैं।
हमें भोजन के मामले में अपने पेट को डस्टबिन नहीं बनाना चाहिए। जिन्हें भोजन रोज उपलब्ध है, प्लेट में पता नहीं क्या-क्या डाल देते हैं। इसलिए एक बात तो कम से कम यह ध्यान रखी जाए कि बाहर से जो भी खाद्य सामग्री पेट में जाए उसके प्रति हम अत्यधिक सावधान रहें। क्योंकि अन्न तन और मन दोनों को प्रभावित करेगा।
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