थोड़ी-बहुत तैयारी तो हर जानवर भी कर लेता है। बिना तैयारी के पशु भी कोई काम नहीं करते। लेकिन हम मनुष्य हैं, जो कभी-कभी बिना तैयारी के भी कुछ काम कर लेते हैं। श्रीराम के राजतिलक के पहले जब अयोध्या में तैयारियां चल रही थीं तो एक तैयारी श्रीराम ने भी करवाई- ‘अवध पुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई॥ राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई॥’ अर्थात्, अवधपुरी बहुत ही सुंदर सजाई गई।
देवताओं ने पुष्पों की वर्षा करते हुए उनकी झड़ी लगा दी। रामजी ने सेवकों को बुलाकर कहा- तुम लोग जाकर पहले मेरे सखाओं को स्नान कराओ। यह जो स्नान कराने की बात रामजी ने कही, इसका गहरा अर्थ है। इसका मतलब है कि बिना शुद्धि के कोई तैयारियां न की जाएं।
हमारे हर कर्म के पीछे शुद्धि का होना जरूरी है। केवल सजावट से ही काम नहीं चलेगा। उपरोक्त प्रसंग में देवताओं ने तो पुष्पों की वर्षा कर दी थी। मतलब सजावट में कोई कमी नहीं रह गई थी। लेकिन सजावट में अगर शुद्धि न हो तो वह सिर्फ दिखावट है। जीवन का कोई भी काम- चाहे वो निजी रूप से किया जाए या सार्वजनिक रूप से- उसमें स्नान का यही अर्थ है कि उसमें पवित्रता और शुद्धि होनी चाहिए।
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