अच्छे मौसम में चाहत भी खुशबू जैसी लगती है। वहीं माहौल खराब हो तो यही चाहत बेचैनी का कारण भी बन जाती है। जब वानरों के साथ विमान में बैठे सीता-रामजी अयोध्या जा रहे थे, पूरी प्रकृति आनंद बरसा रही थी। तुलसीदासजी ने इस दृश्य पर लिखा- ‘परम सुखद चलि त्रिबिध बयारी। सागर सर सरि निर्मल बारी।। सगुन होहिं सुंदर चहुंंपासा। मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा।’
अत्यंत सुख देने वाली तीन प्रकार की (शीतल, मंद, सुगंधित) वायु चलने लगी, समुद्र और नदियों का पानी निर्मल हो गया, चारों ओर शुभ शगुन होने लगे। सबके मन प्रसन्न हैं, आकाश व सभी दिशाएं निर्मल हो गईं। इसे भावनात्मक संक्रमण भी कहते हैं। इमोशनल कन्टेजिन। भावनाएं यदि नकारात्मक हैं तो वातावरण बोझिल हो जाएगा। वहीं यदि भावनाएं सकारात्मक हैं तो वो ही वातावरण आनंदित कर देगा।
श्रीराम की उपस्थिति में भावनाएं सकारात्मक होना ही थीं। तो ऐसा संक्रमण हुआ कि पूरी प्रकृति आनंद में डूब गई। इस घटना से हमें संदेश यह मिला कि साधन जो भी हो, जीवन की यात्रा में परमात्मा को सदैव साथ रखिएगा। यहां इस विमान में रामजी थे तो पूरी प्रकृति आनंद बरसा रही थी। उधर महाभारत के युद्ध में सारथी के रूप में श्रीकृष्ण थे तो अर्जुन बड़ी से बड़ी बाधाएं पार कर भी अपने लक्ष्य में सफल हुए। परमात्मा की संगति का फल ऐसा ही होता है।
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