पशु-पक्षी हम मनुष्यों के मुकाबले प्रकृति के अधिक निकट हैं। इसलिए प्रकृति के संकेत, उसकी भाषा हमसे अधिक वे समझ लेते हैं। स्वामी रामानुजाचार्य, जिनकी आज जयंती है, ने देह और आत्मा-परमात्मा की बात को प्रकृति से बड़े अच्छे ढंग से जोड़ा था। उनका कहना था आत्मा-परमात्मा-प्रकृति तीनों एक हैं, यह समझ आते ही हमारे मनुष्य होने का अर्थ बदल जाता है।
हम जितने प्रकृति के निकट होंगे, उसके संकेत उतनी आसानी से समझ लेंगे। प्राणियों में एक मोर है। कहते हैं मोर को वर्षा का संकेत मनुष्य से पहले मिल जाता है। यह हमारे लिए पर्याप्त संकेत है। तो जैसे ही हम आत्मा, परमात्मा और प्रकृति को ठीक से समझेंगे, देह के अर्थ भी समझ जाएंगे।
चूंकि हम देह पर ही टिके रहते हैं, इसलिए हर जिंदा आदमी को या तो मौत का भय सताता है या मरने की जल्दी रहती है। मरने की जल्दी को आत्महत्या कहते हैं और मृत्यु के भय को अवसाद। ये दोनों ही स्थितियां ठीक नहीं। इसलिए आत्मा, परमात्मा और प्रकृति को सही समय पर समझ लेना चाहिए। यह वक्त इसी समझ का है...।
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