जीवन में समस्याएं-चुनौतियां आ जाएं तो उनसे निपटने के तीन तरीके हो सकते हैं। एक, चुनौती देखकर आंखें मूंद लें। इसे कहेंगे पलायन। दूसरा, सीधे भिड़ जाएं। इसे कहेंगे पराक्रम। लेकिन एक तीसरा तरीका भी है- आंख मींचकर भिड़ जाएं। यहां आंख मींचने का मतलब है अपने भीतर उतरकर आत्मबल को जगाना। भीतर उतरने के भी कई तरीके हैं। योग तो है ही।
लेकिन आत्मबल को जगाने का एक आसान तरीका है, अपने परिवार-समाज के बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेते रहिए। वृद्धजन जब दुआ देते हैं, तो हमारे भीतर का आत्मबल जाग जाता है। अपने से बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेने का हनुमान जी ने एक बहुत अच्छा ढंग बताया है।
जामवंत ने जब हनुमान जी को लंका जाने के पहले सलाह दी तो ऐसा लिखा गया है कि उस सलाह को हनुमान जी ने केवल अपने मस्तक पर ही नहीं रखा, हृदय में उतारा- ‘जामवंत के बचन सुहाए, सुनि हनुमंत हृदय अति भाए’। उन वचनों को हृदय में उतारने का मतलब है कि वृद्धों के शब्द आशीर्वाद बनकर हमारे आत्मबल को जगाते हैं।
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