इंसान कई बार असफल हो जाता है। कई क्षेत्रों में उसे असफलता बहुत पीड़ा पहुंचाती है, लेकिन जब कोई पैरेंटिंग में असफल होता है तो उसके परिणाम बड़े दूरगामी होते हैं। यदि लालन-पालन में हम असफल हो गए तो कीमत आने वाली कई पीढ़ियांं चुकाएंगी।
बच्चों का लालन-पालन तो सांप-सीढ़ी के खेल की तरह है। कभी बच्चे चुनौती बन जाएंगे, कभी बहुत सरल हो जाएंगे। इसलिए इसमें निराश नहीं होना है। जब कभी बच्चों के लालन-पालन में हमें असफलता लगे तो सबसे पहले ईमानदारी से अवलोकन करना कि इसमें कितना दोष बच्चों का है और कितना माता-पिता के रूप में हमारा।
बच्चों के सामने कभी भी असमर्थ न बनें। उनके जीवन में पांच-सात व्यक्तित्व आए हैं- जैसे माता-पिता, भाई-बहन, मित्र आदि। एक व्यक्तित्व परमात्मा के रूप में जरूर उतारें। उन्हें अहसास कराएं कि ईश्वर भी काम आता है। कन्फ्युशियस का एक शिष्य था मेन्सियस। वह कहा करता था कि भलाई इंसान का मूल धर्म है।
इसलिए परिवार में बच्चों का लालन-पालन मानवीय मूल्यों के आधार पर किया जाना चाहिए। यह मूल्य हैं विश्वास, प्रेम, मनुष्यता और स्वतंत्रता। इतनी चीजें हर युग का बच्चा अपने माता-पिता से चाहता है। युग बदलते समय ढंग बदल जाता है पर मूल्य वही रहेंगे। इसलिए आज लालन-पालन की कला मुश्किल है, पर तरीका वही अपनाइए जो ऋषि-मुनियों ने बताया था।
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