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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:पारिवारिक अशांति से मुक्ति का अचूक उपाय सामूहिक योग, कठिन समय में रह सकेंगे खुश

15 दिन पहले
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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar
पं. विजयशंकर मेहता

प्रयास करें कि हमारे घर में कोई एक सदस्य तो कम से कम जागता रहे। यह बात सुनकर सभी यह कहेंगे कि हमारे घर में हर सदस्य दिनभर जागता है। यहां बात उस जागने की नहीं हो रही है। दरअसल हम सब कहीं न कहीं बेहोश हैं। जाग नहीं रहे। और इसीलिए हमारा परिवार अशांत हो जाता है।

यहां जागने का मतलब होश है, जागने का मतलब कठिन समय में खुश रहना है, यहां जागने का मतलब अपने अलावा भी परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए जीने की तमन्ना। एक छोटी-सी घटना है। एक फिल्म समारोह में एक कला फिल्म को ज्यूरी देख रही थी।

और एक सदस्य को छोड़कर सारी ज्यूरी सो गई। कला फिल्मों के साथ अक्सर ऐसा होता है। लेकिन जो जाग रहा था, फिल्म पूरी होने के बाद उसने अन्य सदस्यों से कहा कि मेरा आग्रह है कि एक बार आप सब जागकर इस फिल्म को देखें। और कहते हैं कि उसी फिल्म को पुरस्कार मिला। कहानी का संदेश यह है कि एक जाग रहा था, तो उसने बाकी सब को जगा दिया और परिणाम ठीक आ गया।

घर-परिवार में जो जागने का ढंग है, वो है सामूहिक योग। अगर घर के सदस्य बहुत व्यस्त हैं, तो कम से कम भोजन की टेबल पर जब एकत्रित हों, तो भोजन करने के पहले ही कमर सीधी करके आंख बंद करके बैठ जाएं और कोई भी योग की विधि संक्षेप में अपना लें। ध्यान कर लें। बस यहीं से जागरण शुरू हो जाएगा।