कुछ लोग हैं जो मानते ही नहीं कि ईश्वर है और कुछ लोग मानने के साथ खोज में निकल पड़ते हैं। दरअसल जब भी हम परमात्मा को खोजने जाएंगे, वो दूर होता जाएगा। क्योंकि वो निकट है और खोजने का मामला दूर जाने का है। यहीं से ईश्वर और भक्त का हिसाब-किताब गड़बड़ा जाता है।
परमात्मा को अपने निकट पाने का जो सबसे अच्छा तरीका है, वो वेदों ने उस समय व्यक्त किया जब राजतिलक के समय वेद श्रीरामजी की उपासना कर रहे थे। उन्होंने कहा-मन बचन कर्म बिकार तजि तव चरन हम अनुरागहीं।
अर्थात् हे देव! हम यह वर मांगते हैं कि मन, वचन और कर्म से विकारों को त्यागकर आपके चरणों में ही प्रेम करें। विकार यानी दुर्गुण। गलत बातें तीनों में एकसाथ त्यागना होगी। न मन में रहे, न वचन में बोलने में आए और न कर्म से करने में आए। अगर इनमें से एक भी गड़बड़ हुआ तो आप परमात्मा से दूर हैं यह मान लीजिए।
दरअसल परमात्मा हमारे भीतर है और हम उनको अनुभूत नहीं कर पाते। इसका कारण ये तीन परतें हैं। इन तीनों में यदि समानता आ जाए तो फिर अपने भीतर का ईश्वर बिलकुल दिखेगा और महसूस भी होगा। हमारे भीतर का सर्वश्रेष्ठ इन तीनों में समानता होने पर प्रकट हो जाता है।
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