परछाई को पीटते रहो तो शरीर पर कोई असर नहीं पड़ता। बच्चों के लालन-पालन के मामले में अधिकांश माता-पिता परछाई पीट रहे हैं। काम होना चाहिए शरीर पर। यदि शरीर की आकृति सुधार लें तो परछाई अपने आप उसी आकृति में ढल जाती है।
बड़ा आसान हो जाता है माता-पिता के लिए आज के समय में यह कहना कि बच्चे जिद्दी हो गए हैं, कहना नहीं मानते आदि-आदि। पर उनमें यह दुर्गुण या बेचैनी कहां से आई? यह सही है कि आसपास का वातावरण प्रभावित करता है। फिर भी बाहरी वातावरण का योगदान एक सीमा तक प्रभाव करेगा। सारी तैयारी माता-पिता को अपने स्वभाव पर करना पड़ेगी।
उनके शरीर से निकलने वाली तरंगें यदि निगेटिव हैं तो बच्चे विपरीत आचरण करेंगे। मां-बाप खुद से शिकायत करें और अपने बच्चों को कोसने के बजाय अपनी कमजोरियों को दूर करें। अधिकांश मां-बाप अपने बच्चों के साथ मौजूद रहते हैं तो या तो भीतर से तनावग्रस्त रहते हैं या बाहर से दबाव में दिखते हैं। उनकी पूरी बॉडी लैंग्वेज असहज हो जाती है। नतीजे में बच्चे भी ऐसा ही करते हैं।
फेशियल फीडबैक हाइपोथीसिस के अनुसार अगर आपके होठों पर मुस्कान है तो आपके मसल्स में कुछ ऐसा खिंचाव आएगा कि आपके पूरे शरीर से खुशी की तरंगें निकलेंगी। ऐसे वातावरण में जब बच्चों से कोई बात करेंगे तो वह बड़ी सकारात्मक होगी। इसलिए स्वयं सहज, सजग रहें और बच्चों को सक्षम बनाएं।
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