श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था मुझे भक्तियुक्त लोग अच्छे लगते हैं। इसका अर्थ है कि जिसे कोई चिंता न हो, कोई कामना न हो, मान-अपमान में, शत्रु-मित्र में, सुख-दु:ख में जो सम हो। इसमें सम शब्द बड़ा प्यारा है। यानी दु:ख आए या सुख आए वो विचलित नहीं होगा।
यह तो पक्का है कि दोनों अवश्य आएंगे। इसीलिए श्रीराम के राजतिलक में जब वेद आए, राम ने वेदों का सम्मान किया तो वेदों ने भी उनका गुणगान किया। गुणगान करते-करते वेदों ने कहा कि जो प्रतिदिन नए फूल खिलाता है, ताजे पत्तों से युक्त रहता है, ऐसे संसार वृक्ष स्वरूप यानी विश्वरूप में प्रकट- हे ईश्वर! हम आपको नमन करते हैं।
भगवान का यह एक रूप है वृक्ष की तरह। अब इसमें व्याख्या करते हुए 4 त्वचाएं, 6 तने, 25 शाखाएं, अनेक पत्ते, फूल यह सब कहा है। लेकिन हमारे काम की बात यह है कि तुलसीदासजी ने लिखा- ‘फल जुगल बिधि कटु मधुर बेलि अकेलि जेहि आश्रित रहे।’ इसमें कड़वे और मीठे दोनों प्रकार के फल लगते हैं। यही जीवन का सच है।
हम कितने ही भक्त हो जाएं, परमात्मा पर पूरा भरोसा करें, लेकिन सुख और दु:ख तो आएंगे। कड़वे और मीठे फल तो इस वृक्ष में लगेंगे, लेकिन हमें सम-भाव पैदा करना है। हम दोनों मे खुश रहें, क्योंकि भक्त को कभी उदास नहीं रहना चाहिए।
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