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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:नशे की लत से बर्बाद हो रहा समाज, बचने को अपनाएं 'उठो-बढ़ो' सिद्धांत

2 महीने पहले
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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar
पं. विजयशंकर मेहता

हमारे अनेक संत-महात्माओं ने इस एक संवाद को अलग-अलग ढंग से बोला है। विवेकानंद कहते थे, उठो-बढ़ो। बुद्ध ने कहा, उठो-आभार व्यक्त करो। महावीर ने कहा था कि उठो, रुक मत जाओ। ऐसे सभी संत उठो और चलो की बात करते हैं।

इसका क्या मतलब है? उठो का अर्थ है होश में आओ। और चलो का अर्थ है सक्रिय रहो। ये दो विशेषताएं हमारे भीतर होना ही चाहिए और इन दो विशेषताओं को खंडित करती है नशे की वृत्ति, जो इन दिनों बढ़ती जा रही है। लगातार खबरें आ रही हैं और नशे ने ऐसे-ऐसे दृश्य दिखाना शुरू कर दिए हैं कि इन्हें कहने तक में लज्जा आती है।

यूं तो बुराई, बुराई में भी नहीं है। वरना भगवान बुराई बनाता क्यों? लेकिन भगवान ने कहा है कि तुम्हें अपना विवेक जगाना है। अगर विवेक जागा है, तो बुराई आपका कुछ नहीं कर सकती। अगर विवेक सोया है, तो यही बुराई बर्बाद कर सकती है। इसलिए नशे जैसी बुराई के लिए उठो-चलो। यानी होश में रहो और सक्रिय रहो। इस नशे के नर्क से अपने आपको बचाओ।