कुछ वस्तुएं जीवित होती हैं, कुछ जड़। चेतन वस्तुओं का हम उपयोग करते हैं, उनका मान-सम्मान भी करते हैं। लेकिन जो जड़ होती हैं, हम उनका इस्तेमाल करते हैं, फेंक देते हैं- जैसे हमारा चश्मा, कपड़े, जूते। हम हमारा हित कितना हो, ये हमारे लिए कितने उपयोगी हैं, इतना ही लगाव इनसे रखते हैं, क्योंकि ये जड़ हैं, कुछ बोल नहीं सकते।
हमसे कुछ मांग नहीं सकते। हमारी हैंडलिंग इन्हें लेकर बहुत रफ होती है। जो चेतन वस्तुएं हमारे जीवन में हैं वो तो अनुरोध भी करेंगी, आदेश भी देंगी। पर पुस्तकें ऐसी हैं जो जड़ और चेतन दोनों हैं। हमारे यहां शास्त्र चेतन ही माने गए हैं। शास्त्र हमसे बोलते हैं, उनमें प्राण होते हैं और शास्त्रों का मूल है वेद।
जब राम राजा बने तब सब उनको सम्मान देने आए तो वेद भी आए और स्तुति की। रामजी पहचान गए कि ये वेद हैं। उनका तो सिद्धांत ही है वस्तु जड़ हो या चेतन उसका पूरा मान करो। तुलसीदासजी ने लिखा- प्रभु सर्बग्य कीन्ह अति आदर कृपानिधान।
लखेउ न काहूं मरम कछु लगे करन गुन गान॥ प्रभु ने वेदों को पहचान, उनका बहुत आदर किया। बस यही बात हमें सीखना है। हम अपने जीवन में जिन-जिन वस्तुओं का उपयोग कर रहे हैं, वो चाहे जड़ हों या चेतन, ऐसे ही सम्मान करिए जैसे हम मनुष्यों के साथ कर रहे हैं।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.