मनोरोग ने जब प्रवेश किया तो लोगों ने ध्यान नहीं दिया। फिर ये जब धीरे-धीरे फैला तब भी लोग लापरवाह रहे। अब ये पसर रहा है। हमारे देश में हर छठवां व्यक्ति कहीं न कहीं मनोरोग से पीड़ित है। 21 करोड़ लोग इससे ग्रसित हैं और मनोचिकित्सकों की संख्या 5 हजार है।
देश में केवल दो हजार क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं। इस खतरे को अब नकारा नहीं जाना चाहिए। वो लोग मनोरोग से ज्यादा पीड़ित होते हैं जिनके बहुत सारे प्रयास विफल हो जाते हैं। दूसरे वो लोग हैं, जो भौतिक जीवन को ही सबकुछ मानते हैं।
यूं भी कह सकते हैं कि जो बाहर की ही दुनिया में रहते हैं। यह याद रखें कि एक दुनिया भीतर भी है, वहां आत्मा बसती है। चौबीस घंटे में कुछ समय आत्मा के साथ बिताएं। श्रीराम ने जब रावण को मारा तो रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा। राम के बाण रावण के हाथ और सिर लेकर मंदोदरी के पास छोड़ आए।
वो बाण वापस आकर राम के तरकश में प्रवेश कर गए। हमें इससे ये सबक लेना चाहिए कि हमारे प्रयास बाहर हों, लेकिन थोड़ी देर के लिए वापस अपने तरकश में उतर जाएं यानी भीतर आएं। इसे प्राणायाम कहा गया है, यह मनोरोग का सस्ता इलाज है।
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