जो सहमत है वो शांत है। इसका मतलब हुआ कि असहमति में कहीं न कहीं अशांति छुपी है। पर यह भी सही है कि हमें अपने जीवन में कई बार असहमत होना पड़ता है। यदि असहमति को धैर्य और विवेक से लेंगे तो अशांत नहीं होंगे। लेकिन अगर असहमति आदत बन गई हर बात को नकारने की, हर व्यक्ति की बात को काटने की तो फिर हम अशांत हो जाएंगे।
असहमति की आदत हमारी प्रतिभा के कुछ अच्छे पक्ष को भी आहत कर देती है। शास्त्रों में लिखा है ज्ञानी का लक्षण होता है असहमति पर स्वयं के प्रति चिंतन और दूसरे के प्रति विनम्रता। असहमति एक तरह से तैरना है और सहमति बहना है। अगर हम परमात्मा की ओर जाना चाहते हैं, शांति अर्जित करना चाहते हैं तो बहकर जाना होगा। यहां बुरी बातों के प्रति सहमति नहीं है, बल्कि हमारे चरित्र में स्वीकृति कितनी है।
सुख-दु:ख की स्वीकृति, अपने-पराए की स्वीकृति, रिश्तों में जो व्यवहार चलता है उसकी स्वीकृति। इसी को सहमति कहा गया है। जब भी ऐसी स्थिति आए, अपने आपको सहमत करें। बेकार की बहस, निंदा, आलोचना से बचें तो जल्दी शांत हो जाएंगे।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.