दुनिया में बड़े अलग-अलग ढंग के संबंध होते हैं। हर संबंध के बीच में कुछ ऐसी बातें होती हैं, जिसे वो दोनों ही जानते हैं। ऐसा ही एक संबंध होता है श्रोता और वक्ता का। सामान्य रूप से माना जाता है कि वक्ता श्रेष्ठ होगा और श्रोता सामान्य। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि श्रोता भी श्रेष्ठ होते हैं और वो वक्ता का जीवन रूपांतरित कर देते हैं।
रामचरित मानस में वक्ता-श्रोता के अलग-अलग स्तर आए हैं। उनमें एक स्तर है- वक्ता के रूप में हैं काक भुषुण्डि और श्रोता के रूप में हैं पक्षीराज गरुड़। इन दोनों के बीच बातचीत अनूठी है। रामराज्य के प्रसंग को जब काक भुषुण्डि सुना रहे थे, तो उन्होंने कहा कि शंकर जी स्तुति करके चले गए।
तब उन्होंने एक पंक्ति बोली- ‘सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।’ काक भुषुण्डि कह रहे हैं कि रामकथा सुनने से जो जीवनमुक्त, विरक्त और विषयी हैं, उन्हें क्रमश: भक्ति, मुक्ति और नवीन संपत्ति, यानी नित्य नए भोग मिलते हैं। इन तीन बातों का मेल आज हमारे जीवन में जरूरी है। इसीलिए रामकथा सुनी भी जाए। भक्ति यानी धैर्य, समझ, विनम्रता, चरित्र, संस्कार।
मुक्ति यानी दुर्गुणों से मुक्ति। और नवीन संपत्ति यानी नई-नई टेक्नोलॉजी के माध्यम से जीवन जीने की शैली। अब सोचिए वक्ता और श्रोता का कितना गहरा चिंतन रहा होगा कि हमें आज ये विचार मिला कि जीवन संतुलन का नाम है। न किसी को पूरी तरह नकारो और न आंख मींच कर स्वीकारो।
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