जिन परिवार, संगठन और राष्ट्र में बच्चे पैदा नहीं होते वो समाप्त हो जाते हैं। यह बात युवाओं की भूमिका और उनके महत्व को लेकर स्वामी अवधेशानंद गिरिजी ने बोली थी। एक कार्यक्रम में युवाओं के वैभव भरे प्रबंधन को लेकर वे टिप्पणी कर रहे थे।
उनका कहना था इस समय भारत बहुत आश्वस्त है, क्योंकि उसके युवा परिश्रम से पाना चाहते हैं। परिश्रम में केवल कर्म ही न हो, सृजन भी हो। अब तो जो सृजनशील है वही तेजस्वी है। और तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं, पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखलाकर।
इसलिए परिवार, संगठन और राष्ट्र में बच्चों की यानी नई पीढ़ी की लगातार तैयारी के साथ भूमिका निश्चित करना होगी। युवाओं को चुन-चुनकर अवसर उपहार की तरह भेंट दिए जाएं। गुजरती पीढ़ी अपना श्रेष्ठ इस नई पीढ़ी को वसीयत में देकर जाए। स्वामीजी का भाव यही था कि इस ऊर्जा को समय रहते सही दिशा में रूपांतरित कर लिया जाए। अन्यथा ज्वालामुखी बनने में क्या देर लगेगी।
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