विज्ञान के इस युग में भूकंप आ सकता है, इसके संकेत के यंत्र तो बन गए, लेकिन उसे रोकने की कोई तकनीक आज तक नहीं बन पाई। ठीक ऐसे ही इंसान के भीतर विरह का, पीड़ा का, उदासी या अवसाद का जो भूकंप आता है, उसका बाहर से कोई इलाज नहीं हो सकता। इन मानसिक बीमारियों का इलाज उनके संकेत और समझ ही है। राम आने वाले हैं भरत ऐसा सोच रहे थे और तुलसीदासजी ने लिखा- ‘राम बिरह सागर महं भरत मगन मन होत।
बिप्र रूप धरि पवनसुत आइ गयउ जनु पोत।’ रामजी के विरह सागर में भरत का मन डूब रहा था। उसी समय पवनपुत्र हनुमान ब्राह्मण वेश में इस तरह आ गए मानो किसी को डूबने से बचाने के लिए नाव आ गई हो। हम सब कभी-कभी ऐसी गहराई में डूब जाते हैं, लेकिन हनुमानजी यदि जीवन में आ जाएं तो इससे उबर सकते हैं। ऐसे ही अक्षय तृतीया इस बार हनुमान के रूप में आई है हमें उदासी से बाहर निकालने के लिए।
तो क्यों न यह तिथि मनुष्यता की प्रसन्नता के लिए समर्पित की जाए। हनुमानजी को याद करते हुए आज एक ऐसा प्रकाश जगमगाया जाए जिसमें हम तो जाग्रत हों ही, औरों के लिए भी दुआ-प्रार्थना करें कि सब स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें, आनंदित रहें। एक दीया इसलिए जलाएं कि हम खुश, तो परिवार खुश, परिवार खुश तो समाज खुश और समाज प्रसन्न तो राष्ट्र भी खुशहाल।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.