बनारस की संकरी गलियों से गुजरकर मंदिर जाते हुए गांधी वहां की गंदगी देखकर इतने विचलित हुए थे कि उन्होंने जो टिप्पणी की वो आज याद आती है। गांधी ने सोचा भी नहीं था कि इस देश की सत्ता में कुछ लोग ऐसे भी आएंगे जो उनकी इस बात को गंभीरता से लेंगे। और नतीजा सामने आ गया।
आज देश में अधिकांश प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों की दशा सुधारी जा रही है। जो धार्मिक स्थल जितना ख्यात होगा उसके सुधार में उतना ही धन लगेगा। सरकारें अपना काम कर रही हैं। अब जिम्मेदारी भक्तों की है। जो गंदगी आप करते हैं उसे साफ करने की जिम्मेदारी भी उठाइए। आज भी भारत के पर्यटन में 65% हिस्सेदारी धार्मिक स्थलों की है।
140 करोड़ लोगों की आस्था के केंद्र देवस्थान को एकलव्य की तरह पूजेंं। जीवित द्रोणाचार्य अर्जुन को वो नहीं दे पाए जो मूर्ति बनाकर एकलव्य ने द्रोणाचार्य से प्राप्त किया। हम अपने धार्मिक स्थलों के लिए एकलव्य की तरह समर्पित हो जाएं और वहां से जो श्रेष्ठ मिल रहा है वो लें। आप कुछ दें या न दें स्वच्छता, अनुशासन जरूर दें।
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