संतानों के सपने पूरे करने के लिए माता-पिता अपनी नींदें उड़ा देते हैं। जी-जान लगा देते हैं कि बच्चों पर आई गम की घटाएं खुशियों के रेले में बदल जाएं। श्रीराम के लिए सारी वानर सेना अपने बच्चों जैसी ही थी। उनके कहने पर जब विभीषण ने वस्त्र-आभूषण बरसाए और उन्हें पाकर सारे रीछ-भालू प्रसन्न हो गए तो यह दृश्य देख रामजी ने हंसते हुए छोटे भाई की ओर ऐसे देखा, मानो कह रहे हों- देखो लक्ष्मण, इन्हें कैसा आनंद आ रहा है।
आज मुझे वो ही खुशी हो रही है जो संतानों की मौज-मस्ती देख उनके माता-पिता को होती है। यहां तुलसीदासजी ने दोहे के रूप में बहुत गहरी बात लिखी है- ‘मुनि जेहि ध्यान न पावहिं नेति नेति कह बेद। कृपासिंधु सोइ कपिन्ह सन करत अनेक बिनोद।’ बड़ी से बड़ी तपस्या के बाद ऋषि-मुनि जिनको नहीं प्राप्त कर पाते, वेद जिनका गुणगान पूरा नहीं कर पाते, वे श्रीराम वानरों के साथ विनोद कर रहे हैं।
हमारे लिए समझने की बात यह है कि अपने घरों में बच्चों के साथ हंसी-मजाक का माहौल बनाए रखें। जब बच्चों के साथ ठिठोली करते हैं, तो उस समय हमारा रोम-रोम पॉजिटिविटी से भर जाता है। जीवन का कायदा है वह भीतर से बाहर बहता है, और हालात बाहर से भीतर आते हैं। बच्चों को प्रसन्न देख हमारा जीवन स्वत: बाहर बहने लगता है। तो घर-परिवार में जब भी मन भारी हो, घुल-मिल जाइए अपने बच्चों में।
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