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राजदीप सरदेसाई का कॉलम:लगता है कि भाजपा को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए राहुल गांधी की जरूरत है!

2 महीने पहले
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राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार - Dainik Bhaskar
राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार

‘विदेशी धरती’ के विचार से भी बहुत पहले ‘विदेशी हाथ’ का विचार हुआ करता था। 1976 में कोलकाता में एक सभा के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने विदेशी आलोचकों को आगाह किया था कि वे भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश न करें।

जिन लोगों ने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का विरोध किया था, वे आज सत्ता में हैं और उन्हीं की राजनीतिक शब्दावली का उपयोग करते हुए ‘विदेशी धरती’ की बात कर रहे हैं। उनके निशाने पर हैं इंदिरा गांधी के पोते राहुल गांधी। लेकिन दिक्कत यह है कि 2023 का भारत 1970 के दशक का भारत नहीं है। तब देश को आजाद हुए 30 साल भी नहीं हुए थे और औपनिवेशिकता के जख्म अभी ताजा थे।

शीतयुद्ध चरम पर था और भारत आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होने के कारण दोनों महाशक्तियों के बीच त्रिशंकु बना हुआ था। इकोनॉमी 3% की दर से रेंग रही थी और 50% से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। भारत हर मायने में एक थर्ड वर्ल्ड कंट्री था। तब अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए ‘विदेशी हाथ’ का हवाला देकर बचा जा सकता था।

2023 के भारत के सामने ऐसी कोई चुनौतियां नहीं हैं। आखिर यह वह देश है, जो जी-20 की अध्यक्षता को दुनिया के मंच पर भारत के बढ़ते दबदबे की तरह प्रस्तुत कर रहा है, जो आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है और जो खाद्य-उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका है।

जो दुनिया का वैक्सीन कैपिटल कहलाया था, जिसके यहां यूनिकॉर्न कम्पनियों की भरमार है और जिसके यहां तेजी से बुनियादी ढांचे का विकास हो रहा है। ऐसे फील-गुड माहौल में पूर्ण बहुमत वाली सरकार को एक असहमत विपक्षी स्वर की इतनी चिंता क्यों होनी चाहिए?

यही कारण है कि सरकार के सांसदों द्वारा राहुल गांधी से इस बात के लिए माफी की मांग करना कि उन्होंने विदेशी धरती पर जाकर भारतीय लोकतंत्र पर सवाल खड़े किए, एक स्वस्थ-भावना से भरा कदम नहीं मालूम होता। आखिर यह वही सरकार है, जिसका जी-20 मंत्र है- ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य।’

एक ऐसा देश, जो विश्वगुरु बनने की आकांक्षा रखता है, उसमें आलोचनाओं को सहन करने की क्षमता भी तो होनी चाहिए? आखिर हमारी सरकार विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों को एक वृहत्तर राजनीतिक परिवार का हिस्सा मानती ही है।

लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की घरेलू राजनीतिक हकीकतों के कारण उसकी वैश्विक महत्वाकांक्षाएं लड़खड़ा जाती हैं। प्रधानमंत्री वैश्विक मंचों पर जिस आत्मविश्वास का परिचय देते हैं, वह देश की लोकलुभावन राजनीति में प्रकट होने वाली घबराहट से बहुत विपरीत है।

राहुल ने जो कहा, उसके लिए उन्हें चुनौती देना एक बात है लेकिन उनसे माफी की मांग पर संसद ठप कर देना बिलकुल दूसरी बात है। आज सरकार अपने राजनीतिक विपक्षियों के प्रति जैसा संघर्षपूर्ण रवैया अख्तियार किए हुए है (जिसकी झलक प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा उन पर की जाने वाली कार्रवाइयों में दिखती है) वैसे में दुनिया में भारत की सॉफ्ट-पॉवर को क्षति पहुंचने का खतरा उत्पन्न हो गया है। क्योंकि तेजी से अराजकता की ओर बढ़ रही दुनिया में भारत के लोकतांत्रिक स्थायित्व को आज दुनिया में एक सुखद दृश्य की तरह देखा जाता है।

यह तब हो रहा है, जब मोदी सरकार सर्वशक्तिमान है और विपक्ष में सामंजस्य का अभाव है। इसके बावजूद अगर आज सरकार विपक्ष पर टूट पड़ी है तो इसका यही कारण हो सकता है कि वह 2024 में जीत की हैट्रिक लगाने के अवसर को किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहती। राहुल गांधी पर तीखे प्रहार इसी रणनीति का हिस्सा हैं।

विदेशी धरती पर राहुल के द्वारा कही गई बातों के बहाने कांग्रेस नेतृत्व की देशभक्ति को प्रश्नांकित करने की कोशिशें की जा रही हैं। इस विवाद के माध्यम से सरकार एक तीर से कई निशाने साध रही है। एक तो ऐसा करके वह संसद के भीतर अदाणी मामले पर चर्चाओं को टाल रही है।

दूसरे, इसके जरिए वह विपक्षी दलों में आपसी फूट को बढ़ावा दे रही है, क्योंकि सभी विपक्षी नेता राहुल गांधी की नेतृत्व-शैली से सहमत नहीं हैं। तीसरे, इससे भाजपा के समर्थक वर्ग की एक ‘एंटी-नेशनल’ फिगर की खोज भी पूरी होती है। कभी-कभी तो लगता है कि भाजपा को अपनी राजनीति को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए राहुल गांधी की जरूरत है!

‘विदेशी धरती’ पर राहुल द्वारा कही गई बातों के बहाने कांग्रेस-नेतृत्व की देशभक्ति को प्रश्नांकित करने की कोशिशें की जा रही हैं। इस विवाद के माध्यम से सरकार एक तीर से कई निशाने साध रही है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)