आज देश की प्रथम नागरिक एक आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने दलित राष्ट्रपति का स्थान लिया है। सरकार, न्यायपालिका और प्रशासन में मुस्लिम, ईसाई, अन्य अल्पसंख्यक उच्च पदों पर हैं। सिख बहुसंख्या वाले राज्य पंजाब में सिख मुख्यमंत्री हैं। नगालैंड, मिजोरम, मेघालय जैसे ईसाई बहुसंख्या वाले राज्यों में ईसाई मुख्यमंत्री हैं। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की कमान मुस्लिम मंत्रियों के हाथों में रही है।
पिछले कुछ वर्षों में केंद्र-राज्य की सरकारों के द्वारा प्रणालीगत रूप से मुस्लिम समुदाय के गरीब-पिछड़ा तबके की मदद के प्रयास किए गए हैं। पसमांदा और अर्जल समुदाय को आगे बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं। मुस्लिम महिलाओं के हक में निर्णय लिए गए हैं। छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो बीते आठ सालों से भारत साम्प्रदायिक टकरावों से मुक्त रहा है, जबकि अतीत में दंगे-फसाद आम थे।
मॉब लिचिंग की निंदनीय घटनाएं भी चंद ही हुई हैं और वे किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं थीं। कानून-व्यवस्था सभी दोषियों पर समान रूप से कार्रवाई करती है। इसके बावजूद अमेरिका के एक प्रतिष्ठित अखबार में एक पेड-विज्ञापन छपवाकर यह कहा गया है कि भारत में लाखों नागरिक धार्मिक भेदभाव और मॉब लिंचिंग के शिकार हो रहे हैं।
गांधी जयंती के अवसर पर जारी किया गया यह विज्ञापन खुद गांधीजी के बुनियादी मूल्य सत्य के विपरीत है। यह झूठ से भरा कथन है, जिसमें कोई तथ्य या डाटा प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। अगर समाचार-पत्र ने एक साधारण-सा फैक्ट-चेक किया होता तो वह इस दुष्प्रचार को प्रकाशित करने से कतरा जाता। भारत का कानून-व्यवस्था तंत्र राज्यों की सरकारों के अधीन है, जिनमें से अनेक में विपक्षी दलों का शासन है।
भारत की न्यायपालिका अपने स्वतंत्र-विवेक के लिए प्रसिद्ध है। इसके बावजूद दुष्प्रचार करने वालों ने यह झूठ प्रस्तुत किया कि न्यायपालिका और पुलिस भाजपा-संघ के लोगों से भरी हुई है। वैश्विक जनमत को निरंतर इस तरह की भ्रामक सूचनाएं भारतीय हितों के विरोधी समूहों द्वारा परोसी जा रही हैं। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित या खालिस्तान से प्रेरित समूहों की मंशा तो समझी जा सकती है, लेकिन उनके झूठ को पश्चिम के लेफ्ट-लिबरल वर्ग के द्वारा मान्यता दे दी जाती है।
ऑस्ट्रेलिया के राजनीतिक समाजशास्त्री साल्वातोरे बैबोन्स ने इस तरह के पश्चिमी थिंक टैंकों को वास्तविक बर्बरों की संज्ञा दी है। मुख्यधारा के भारतीय समाज के द्वारा उनके आग्रहों को अस्वीकृत कर दिए जाने के बाद ये समूह अब अपने दुष्प्रचार के लिए पश्चिमी-जगत को इस्तेमाल कर रहे हैं। यह विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों के लिए भले जनसम्पर्क की चुनौती सिद्ध हो, आम भारतीय पर उसका ज्यादा असर नहीं पड़ता। हालांकि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग जरूर बहकावे में आ सकते हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे- जो कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन सकते हैं- ने हाल ही में चेताते हुए कहा कि अगर मोदी और शक्तिशाली हुए तो भारत में सनातन धर्म का राज स्थापित हो जाएगा। यानी अब विपक्षी नेतृत्व हिंदुत्व के साथ ही सनातन धर्म को भी अवमानित करने लगा है। खड़गे को पता नहीं होगा कि गांधी हमेशा खुद को एक सनातनी हिंदू कहते थे। वहीं पं. नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में सनातन धर्म को भारत की प्राचीन आस्था बतलाया था। अल्पसंख्यक खतरे में हैं- इस नैरेटिव के निर्माण के पीछे हमेशा से न्यस्त स्वार्थ रहा है।
विभाजन से पहले जिन्ना यह करते थे, अब यह लिबरलों की रोजी-रोटी बन चुका है। मुस्लिम नेतृत्व को इसे अस्वीकार करना चाहिए। गुरु गोलवलकर के समय से ही आरएसएस मुस्लिम समुदाय से संवाद करने का यत्न करता आ रहा है। हाल के समय में चीजें और आगे बढ़ी हैं और मुस्लिम सिविल सोसायटी के कुछ सदस्यों ने संघ प्रमुख से संवाद किया, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली के एक मदरसे की यात्रा की। भारत विविधताओं से भरा देश है।
इसमें साम्प्रदायिक तनाव का भी सदियों पुराना इतिहास रहा है। मजहब के आधार पर हुए भारत के बंटवारे ने दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की खाई को गहरा कर दिया था, इसके बावजूद भारतीय समाज विविधता में एकता की भावना से संचालित होता रहा है। यही कारण था कि भारत दूसरा पाकिस्तान नहीं बना है। यह याद रखना चाहिए कि पश्चिमी जगत के लिए भले ही विविधतापूर्ण-लोकतंत्रों को टूटने से बचाने की चुनौती बड़ी हो, भारत में तो यह एक सजीव-प्रयोग है और एक अरसे से घटित होता आ रहा है।
संघ-प्रमुख मोहन भागवत एक लम्बे अरसे से मुस्लिम समुदाय से संवाद स्थापित करने की कोशिशें करते आ रहे हैं। उनके पूर्ववर्तियों ने भी यही किया था, लेकिन भागवत के प्रयास अधिक एकाग्र हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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