कुछ दिन पहले वित्त मंत्री ने ‘मिडिल क्लास’ यानी मध्यम वर्ग के साथ सहानुभूति जताते हुए कहा कि वह खुद मिडिल क्लास हैं, इसलिए वह उनका दुख समझ सकती हैं। उनके इस बयान की वजह से मध्यम वर्ग के बारे में काफी चर्चा हुई। किसी ने उनके चुनावी शपथ पत्र से उनकी संपत्ति की जानकारी निकाली, जिसमें उन्होंने कुल संपत्ति 1.8 करोड़ रुपए बताई है। यदि वर्ल्ड इनइक्वेलिटी डेटाबेस में दिए आंकड़ों से चलें, तो वह देश के सबसे सक्षम 1% में हैं।
ऐसी गलतफहमी सिर्फ उन तक ही सीमित नहीं, बल्कि व्यापक है। कुछ साल पहले मैंने क्लास में छात्रों से यही सवाल पूछा कि क्या आप खुद को मिडिल, लोवर या अपर क्लास मानते हैं? साथ में कुछ सवाल और थे कि क्या आपके घर में फोर-व्हीलर और सीवर लाइन से जुड़ा टॉयलेट है? करीब 90% छात्रों ने खुद को मध्यम वर्गीय बताया। जबकि गाड़ी व टॉयलेट 80-100% छात्रों के पास थी।
आश्चर्य तब होगा जब आप शहरी इलाकों में इन वस्तुओं की उपलब्धता के आंकड़े जानें। एनएफएचएस सर्वे (2019-21) के अनुसार गाड़ी (14%) व सीवर से जुड़ा टॉयलेट (26%) के पास था। जिन सुविधाओं का सुख केवल 14% या 26% लोगों के पास हो, क्या उन्हें हम मध्यम मान सकते हैं?
यह बात बार-बार सुनने में आती है कि उनके साथ कितनी नाइंसाफी हो रही है। उदाहरण के लिए, ‘हम टैक्स भरते हैं, लेकिन हमें सरकार से क्या मिलता है?’ जब सरकारी नौकर ऐसी बात करते हैं, तो सबसे ज्यादा ताज्जुब होता है, क्योंकि उनकी तो सैलरी भी सरकार को दिए टैक्स से आती है।
यह बड़ी गलतफहमी है कि सक्षम वर्ग, सबसे ऊपर के 20% लोगों को सरकार से कुछ नहीं मिलता। उदाहरण के लिए गौर कीजिए कि सीवर से जुड़ा टॉयलेट शहरी क्षेत्रों में भी एक ऐसा सुखसाधन है जो केवल एक चौथाई लोगों को उपलब्ध है। सीवर की सुविधा सरकार ही उपलब्ध करवाती है। या फिर उन सड़कों के बारे में सोचिए जिन पर आपकी गाड़ी चल रही है, वह भी हमारे कर से आती है।
आयकर लोगों को सबसे ज्यादा चुभता है। सच्चाई यह है कि अंतरराष्ट्रीय मानदंडों से तुलना करें तो भारत में एंट्री लेवल आयकर बहुत ज्यादा नहीं। (कई देशों में सबसे निम्न स्तर पर लोग 40% आयकर भरते हैं, और भारत में सबसे ऊपर के स्तर पर भी 40% नहीं लगाया जाता।)
पिछले साल संसद में वित्त मंत्री ने बताया कि 2019-20 में 136 करोड़ लोगों में से केवल 8 करोड़ लोगों ने आयकर या कॉर्पोरेट टैक्स भरा, यानी केवल 6%। इतनी कम मात्रा में आयकर देने वालों की संख्या से या तो हम यह समझें कि देश में सालाना 5 लाख रु. से ज्यादा आय केवल 6% आबादी की है या ज्यादा आय वाले लोग हैं पर उन तक सरकार के हाथ नहीं पहुंच पाए।
यदि पहली संभावना सही है, तो हम, जो आयकर भरते हैं, उस टॉप 6% में हैं- फिर हम कैसे मिडिल क्लास हुए? यदि दूसरी संभावना सही है, तो यह लोग आयकर के दायरे से बाहर इसलिए हैं क्योंकि सरकारी अक्षमता के कारण इनकी ‘कर चोरी’ नहीं पकड़ी जा रही।
चोरी पकड़ने के लिए सरकार को लोगों की जरूरत है और इच्छाशक्ति की, दोनों में ही ‘मध्यम वर्ग’, जो वास्तव में सक्षम वर्ग है, सरकार का साथ कम ही देता है। अपनी सही (सक्षम) पहचान को स्वीकार न करने से देश को नुकसान है।
यह गंभीर समस्या है कि जो लोग देश के सबसे सक्षम 20% में हैं, वह खुद को मध्यम वर्ग समझते हैं। इस तरह की गलतफहमी से नुकसान यह है कि लोग ईमानदारी से टैक्स देने में संकोच करते हैं और टैक्स के खिलाफ हैं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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