न्यूयॉर्क से धनाढ्यों का पलायन हो रहा है, लेकिन इस शहर के स्थानीय कुलीन कुछ ज्यादा ही निश्चिंत नजर आ रहे हैं। वे मानते हैं कि मैनहटन आज भी सांस्कृतिक-जगत की धुरी है और हमेशा रहेगा, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं।
वास्तव में- जैसा कि एक प्रोफेसर ने हाल ही मुझसे चर्चा में कहा कि- अगर न्यूयॉर्क के धनकुबेर मियामी की ओर कूच कर रहे हैं तो इससे न्यूयॉर्क को धेला भी फर्क नहीं पड़ता, उलटे यह उसके लिए अच्छा ही है। लेकिन खुशफहमी किसी के लिए भी अच्छी नहीं होती, फिर वह दुनिया का सबसे बड़ा शहर ही क्यों न हो।
खासतौर पर मौजूदा हालात में। महामारी ने यह बता दिया है कि रिमोट-ऑफिस से भी पूर्णकालिक काम किया जा सकता है, जिससे खुद को री-लोकेट करना अब सबके लिए पहले से अधिक सहज हो गया है। इसे क्रैक्ड-मिरर-इफेक्ट कहा जा रहा है।
यानी न्यूयॉर्क में जो कमियां हैं- जैसे कि करों की ऊंची दरें, बढ़ते अपराध, पूंजीवादियों के प्रति बढ़ती दुर्भावना आदि- इसका परिणाम मियामी की ओर होने वाली उड़ानों के रूप में सामने आ रहा है, क्योंकि मियामी में न केवल टैक्स की ज्यादा झंझट नहीं है, वहां के लोग भी आपका खुलकर स्वागत करने को तैयार रहते हैं।
कुछ ऐसा ही इफेक्ट मॉस्को में भी दिखाई दे रहा है, जहां क्रेमलिन के दबदबे के चलते और यूक्रेन में चल रहे युद्ध पर दुनिया की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद अमीर रूसियों के पलायन का सिलसिला जारी है। वे दुबई जैसी जगहों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जहां उनकी बसर ज्यादा मजे से हो सकती है। वहीं बीजिंग में नियामक संस्थाओं के बढ़ते दबाव से तंग आकर बिजनेस-टायकून अब सिंगापुर में डेरा जमाने लगे हैं।
पिछले साल न्यूयॉर्क में अमीरों की आबादी 12 प्रतिशत घट गई, वहीं हांगकांग में 14 और मॉस्को में 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। ये तमाम अमीर दुबई, सिंगापुर और मियामी जैसे शहरों की ओर कूच कर रहे हैं। इन तीन शहरों ने पूंजीपतियों के लिए पलक-पावड़े बिछा दिए हैं और वे धनपतियों के पलायन का अपने हित में दोहन करना चाहते हैं।
मिलियनेयरों को आकृष्ट करने में इन ग्लोबल-सिटीज़ की रैंकिंग सबसे अव्वल है। साथ ही वे उन तीन लग्जरी प्रॉपर्टी बाजारों में भी शुमार हो गए हैं, जहां कीमतें इस साल सबसे तेज गति से बढ़ने की सम्भावना है। हाल ही में इन शहरों की यात्रा के दौरान मैंने पाया कि वे लोगों को अपनी तरफ खींचने वाले चुम्बक बनते जा रहे हैं।
वहां की जलवायु अनुकूल है, जीवनशैली आरामदायक है और वहां की सरकारें चुस्त-दुरुस्त और चाक-चौबंद हैं। वहां पर अमीरों की बढ़ती आमद के साथ ही नए रेस्तरां और आलीशान मॉल्स खुल रहे हैं और आर्ट फेस्टिवलों के आयोजन में बढ़ोतरी हो रही है।
इन तीनों में सिंगापुर सबसे स्थापित है। यहां मिलियनेयर लोगों की आबादी ढाई लाख है, जो कि दुबई और मियामी से कहीं ज्यादा है। यहां आप एक ऊर्जा को अनुभव कर सकते हैं। हाल ही में सिंगापुर ने पारिवारिक सम्पदा प्रबंधन फर्मों का स्वागत करने के लिए एक एजेंसी खोली है। इसमें इनफ्लो इतना अधिक रहा कि अब सिंगापुर इस बात को लेकर बहुत सतर्क हो गया है कि टैक्स-इंसेंटिव के लिए किसे पात्र समझा जाए और किसे नहीं।
अब वहां यह चुटकुला चल रहा है कि 500 मिलियन डॉलर अब नए 100 मिलियन डॉलर हैं। सिंगापुर में स्वागत के लिए इतने ही पैसों की अब दरकार रहती है। आमतौर पर यह शहर सादगीपूर्ण रहता है, लेकिन हाल की यात्रा के दौरान मैं इसमें सम्पत्ति की नुमाइश देखकर चकित रह गया। एक घर के बाहर तो मैंने आठ रेड फेरारी खड़ी देखी थीं!
दुबई अब गोल्डन वीज़ा की पेशकश करने लगा है, जिसकी मदद से अमीर लोग वहां प्रॉपर्टी खरीदकर रह सकते हैं। इसके चलते वहां रूस ही नहीं, दक्षिण एशिया और मध्य-पूर्व से भी प्रवासियों की आमद हो रही है। रीयल-एस्टेट बूम पूरे शबाब पर है और आठ की संख्या यानी करोड़ों में ही तमाम खरीदियां की जा रही हैं।
80 प्रतिशत लेनदेन कैश में हो रहे हैं, जिससे प्रॉपर्टी बाजार स्थिर बना हुआ है। दुबई हाई-कल्चर के साथ ही गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स को भी बहुत महत्व देता है। एक बार जरा नए एटलांटिस द रॉयल होटल की शान देखिए। इसमें 800 कमरे और 17 रेस्तरां हैं, जिनमें से अधिकतर का संचालन विश्वप्रसिद्ध शेफ्स के द्वारा किया जा रहा है।
न्यूयॉर्क की तुलना में वहां बेहतरीन भोजन प्राप्त करने की सम्भावना आज ज्यादा हो चुकी है। मियामी को किसी समय धूप सेंकने वालों की जगह माना जाता था। लेकिन अब करों से अपना बचाव करने की कोशिश करने वाले अमीर वहां खिंचे चले आ रहे हैं। वहां तेजी से बढ़ते फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट में नए सौदे किए जा रहे हैं और उसके रेतीले समुद्रतटों पर चहलकदमी करने के बाद नए लग्जरी शॉपिंग नेबरहुड में खरीदारी की जा रही है।
अमेरिका में इसके जैसा बाजार दूसरा नहीं है। दूसरे शब्दों में, नि:संकोच रूप से पूंजीवादी शहर एक-दूसरे को खोज निकाल रहे हैं। मियामी-दुबई की फ्लाइट में बिजनेस क्लास की सीटें भरी रहती हैं। मैनहटन वाले भले ही दम्भ का प्रदर्शन करते हुए कहें कि इन अमीरों की रुखसत से उन्हें फर्क नहीं पड़ता, उलटे यह अच्छा ही हुआ है, लेकिन यह पलायन उनके लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है। अनेक वर्षों से वहां की आबादी फ्लोरिडा की ओर कूच कर रही है, जहां की इकोनॉमी आज न्यूयॉर्क से दोगुनी तेज गति से बढ़ने लगी है। जबकि वहां की सरकार न्यूयॉर्क की तुलना में आधा भी खर्च नहीं करती।
बदल रहे हैं पूंजी के ठिकाने
खुशफहमी किसी के लिए अच्छी नहीं होती, फिर वह दुनिया का सबसे बड़ा शहर ही क्यों न हो। खासतौर पर मौजूदा हालात में। महामारी ने बता दिया है कि रिमोट-ऑफिस से भी पूर्णकालिक काम किया जा सकता है, जिससे खुद को री-लोकेट करना अब पहले से अधिक सहज हो गया है। न्यूयॉर्क, हांगकांग और मॉस्को के अमीर अब दुबई, सिंगापुर और मियामी की ओर कूच कर रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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