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रुक्मिणी बनर्जी का कॉलम:छह की उम्र से शुरू होती है औपचारिक शिक्षा; बच्चों के दाखिले में जल्दबाजी ‘लर्निंग डेफिसिट’ पैदा न कर दे

एक वर्ष पहले
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रुक्मिणी बनर्जी, ‘प्रथम’ एजुकेशन फाउंडेशन से संबद्ध। - Dainik Bhaskar
रुक्मिणी बनर्जी, ‘प्रथम’ एजुकेशन फाउंडेशन से संबद्ध।

दुनिया के लिए नया साल जनवरी में शुरू होता है। लेकिन देश के अधिकांश राज्यों में स्कूलों का नया वर्ष अप्रैल से आरम्भ होता है। पिछले दो वर्षों में कुछ समय के लिए कहीं-कहीं स्कूल खुले और कहीं नहीं भी खुले। बहुत सारे विद्यालयों के लिए अप्रैल 2020 और अप्रैल 2021 सिर्फ कागजी तौर पर ही नए वर्ष माने गए। पर इस साल आने वाले अप्रैल महीने के लिए हमें पूर्ण रूप से तैयारी कर लेनी चाहिए। उम्मीद करते हैं कि सभी गांवों और शहरों में सभी कक्षाओं के लिए जल्द ही स्कूल खुल जाएंगे।

अप्रैल 2021 में पहली कक्षा में दाखिल होने वाले बच्चों को एक खास नजर से देखना जरूरी है। 2020 में नई शिक्षा नीति घोषित होने के बाद यह पहली कक्षा का पहला समूह है जिसके ऊपर पूरी शिक्षा व्यवस्था का ध्यान जा सकता है। (पिछले साल अप्रैल में महामारी का दूसरा भयानक दौर चल रहा था। उस वक्त कोई भी परिवार-स्वास्थ्य के अलावा कुछ नहीं सोच पा रहा था।

पहली कक्षा में कौन जाएगा? वैसे तो कहा भी जाता है कि छह साल की उम्र से बच्चे की औपचारिक शिक्षा शुरू होती है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में भी छह से चौदह साल का उल्लेख किया गया है। लेकिन वास्तविक स्थिति अलग ही है। महामारी काल के पहले भी अक्सर पहली कक्षा में दाखिल होने वाले बहुत से बच्चे पांच साल या उससे भी कम उम्र के होते थे।

माता-पिता बच्चों को पढ़ाने के लिए बेचैन और उत्सुक रहते हैं। उन्हें लगता है कि जितनी जल्दी बच्चों को विद्यालय से जोड़ दिया जाए, उतना ही ज्यादा बच्चों को सीखने के अवसर मिलेंगे। अमूमन प्राइवेट स्कूल बच्चों का पहली कक्षा में दाखिला नहीं लेते। एलकेजी-यूकेजी के बाद ही पहली कक्षा में आने का मौका मिलता है।

कम उम्र में पहली में दाखिला हो जाने से बच्चों का नुकसान होता है। पहली कक्षा का पाठ्यक्रम छह साल के बच्चे के विकास, उसके पढ़ने के स्तर और उसकी मानसिकता ध्यान में रखकर बनाया गया है। छोटे बच्चों के लिए यह पाठ्यक्रम सही मायने में हजम करना बहुत मुश्किल होता है, जिस कारण इनकी अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाती है। इसी ‘लर्निंग डेफिसिट’ के साथ बच्चा अगली कक्षा में चला जाता है और उसकी पूरी शिक्षा के बढ़ते क्रम का यह अभाव उसके लिए तकलीफदेह होता है।

शिक्षा व्यवस्था की इस कमजोरी को स्वीकारते हुए 2020 की नई शिक्षा नीति ने प्रारंभिक व बुनियादी स्तर के खालीपन को भर दिया है। शिक्षा नीति के अनुसार 3-8 साल की उम्र तक के सभी बच्चों की शिक्षा को एक ही धारा में देखना जरूरी है। बच्चा आंगनवाड़ी में हो या विद्यालय में, उसके सीखने-सिखाने के तरीकों को व्यवस्थित रूप से नियोजित करना होगा।

इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हरियाणा, दिल्ली और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने अपनी आंगनवाड़ी में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की कड़ी को मजबूत करना शुरू कर दिया है। सही समय पर, सही उम्र में, पहली कक्षा में जाना-शिक्षा की नींव को मजबूत बनाने का एक बहुत अहम हिस्सा है।

वर्तमान में बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि मेरे बच्चों के दो साल बर्बाद हो गए हैं, इसलिए स्कूल खुलते ही उन्हें जल्दी पढ़ाना शुरू कर देना चाहिए। इस बात से कुछ हद तक मैं भी सहमत हूं। पर छोटे बच्चों के साथ जल्दी करने से अक्सर विपरीत परिणाम मिलते हैं। इसलिए जरूरी है कि छोटे बच्चों के लिए सही समय पर सही कदम उठाएंं।

अगर बच्चा चार या पाँंच साल का हो, तो उन्हें एक साल के लिए और मजे से आंगनवाड़ी, बालवाड़ी या एलकेजी-यूकेजी में बिताने दीजिए। वहां उसकी नींव और मजबूत होगी। एक साल बाद पूरी तैयारी के साथ वह पहली में खुशी-खुशी जाएगा। बच्चों के लिए और देश के लिए शिक्षा का पहला कदम सबसे ताकतवर और ठोस हो- यही हम सबका लक्ष्य होना चाहिए।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)