इस साल जब महिला दिवस मनाया गया तो उसकी थीम थी- डिजिटऑल : इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी फॉर जेंडर इक्वेलिटी। यह एक महत्वपूर्ण पहल थी, क्योंकि यह डिजिटल लैंगिक विभाजन की ओर हमारा ध्यान खींचती है। डिजिटल डिवाइड या टेक्नोलॉजिकल गैप उसे कहते हैं, जब दो समूहों को समान रूप से तकनीकी और इंटरनेट तक पहुंच प्राप्त न हो। पूरी दुनिया में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की डिजिटल टेक्नोलॉजी तक पहुंच कम है। यानी दुनिया के दूसरे संसाधनों तक स्त्रियों की कम पहुंच वाली परिघटना अब डिजिटल-जगत में भी दोहराई जा रही है।
इंटरनेशनल टेलीकॉम यूनियन के नवीनतम डाटा के मुताबिक आज दुनिया में इंटरनेट का उपयोग करने वाली स्त्रियों की संख्या 57 प्रतिशत है, जो कि पुरुषों की तुलना में पांच प्रतिशत कम है। ग्लोबल इंटरनेट यूज़ जेंडर गैप सापेक्ष रूप से आठ प्रतिशत पर पहुंच गया है। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों के पास मोबाइल फोन होने की सम्भावना सात प्रतिशत कम है। इसमें भी इंटरनेट वाला मोबाइल स्त्रियों के पास होने की सम्भावना पुरुषों की तुलना में 16 प्रतिशत कम है।
अगर कुल आंकड़ों की बात करें तो पुरुषों की तुलना में 26.4 करोड़ कम महिलाएं मोबाइल इंटरनेट का उपयोग कर पाती हैं। समय के साथ यह अंतराल बढ़ता चला जाता है और डिजिटल स्किल व डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल करने की क्षमता के अभाव के रूप में सामने आता है। इससे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और मैथ्स यानी स्टेम फील्ड्स में स्त्रियों की सहभागिता भी कम होती है। वे टेक-सेक्टर के नेतृत्व और उद्यमिता में पुरुषों के समान सहभागिता नहीं कर पाती हैं।
इस अंतराल को पाटना जरूरी क्यों है? क्योंकि अगर आधी आबादी नई प्रौद्योगिकी क्रांति से वंचित रहेगी तो दुनिया आगे नहीं बढ़ सकेगी। गरीबी खत्म करने के लिए महिलाओं की उन्नति महत्वपूर्ण है, और डिजिटल क्रांति महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए नए अवसर मुहैया कराती है।
मोबाइल फोन, इंटरनेट, डिजिटल प्लेटफॉर्म और डिजिटल वित्तीय सेवाएं महिलाओं के सामने अवसरों का नया संसार खोलती हैं, जिससे वे न केवल अपना नॉलेज बढ़ा सकती हैं, बल्कि उनसे उन्हें आय कमाने का साधन भी मिलता है। आखिर महिलाएं पिछड़ी क्यों हैं? क्योंकि उनके प्रति एक सामाजिक-सांस्कृतिक दुराग्रह के चलते उन्हें शिक्षा, अपस्किलिंग, डाटा सेवाओं, प्रौद्योगिकी आदि का लाभ उठाने के पुरुषों जितने अवसर नहीं प्रदान किए गए हैं। भारत में तो यह विभाजन बहुत स्पष्ट है।
एनएफएचएस 2019-21 के डाटा के मुताबिक भारत की केवल 33.3 प्रतिशत महिलाएं ही जीवन में कभी इंटरनेट का इस्तेमाल कर चुकी हैं। इसकी तुलना में 57.1 प्रतिशत पुरुषों को यह अवसर मिल चुका है। यह लैंगिक-विभाजन हर राज्य में देखा गया है। ग्रामीण भारत में यह अंतराल लगभग दोगुना है, जहां 49 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 25 प्रतिशत महिलाएं ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर चुकी होती हैं।
कोविड-19 के दौरान महिलाओं के द्वारा मोबाइल फोन का उपयोग बढ़ा था। आज सरकार अनेक ऐसे फ्लैगशिप कार्यक्रम चला रही है, जो इस दिशा में महिलाओं की मदद कर रहे हैं, जैसे कि राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन और प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान।
डिजिटल लैंगिक-विभेद का एक अन्य पहलू महिलाओं के साथ किया जाने वाला ऑनलाइन दुर्व्यवहार है। साइबर-स्टाकिंग और अन्य प्रकार के साइबर-यौन दुर्व्यवहार के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। यानी वास्तविक जगत में महिलाओं को जैसे एब्यूज़ का सामना करना पड़ता है, वही कहानी अब डिजिटल दुनिया में भी दोहराई जा रही है। इसी के चलते अनेक महिलाएं ऑनलाइन दुनिया से खुद को दूर कर लेती हैं। हम सभी को अपने-अपने क्षेत्र में स्त्रियों के डिजिटल-समावेश हेतु प्रयास करने चाहिए।
डिजिटल इकोनॉमी में महिलाओं की सहभागिता के हमें बेहतर परिणाम मिलेंगे। केवल पुरुषों की टीम के बजाय स्त्री-पुरुषों की मिली-जुली टीम के द्वारा किए गए इनोवेशंस का ज्यादा असर पड़ता है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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