प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13-15 अगस्त के दौरान हर भारतीय से अपने घर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अपील की है। इस अभियान को उन्होंने हर घर तिरंगा नाम दिया है। यह मोदी का एक और मास्टरस्ट्रोक साबित होगा। इससे विपक्षी दल और बैकफुट पर आ जाएंगे। वे न तो पूरी तरह से इसका विरोध कर सकते हैं और न समर्थन कर सकते हैं।
विरोध करने का मतलब होगा राष्ट्रविरोधी कहलाने का खतरा उठाना, वहीं समर्थन करने का मतलब होगा मोदी के निर्णय से सहमति जताना। आज विपक्षी दल कोई ऐसा मुद्दा खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसके जरिए वे आमजन की भावना से जुड़ सकें। ऐसे में वे न तो राष्ट्रविरोधी कहलाना चाहेंगे, न ही मोदी के समर्थन में खड़े हो सकेंगे।
मोदी अतीत में भी इस तरह की अनेक अपील कर चुके हैं, जैसे कि सार्वजनिक स्थलों पर भारत माता की जय बोलना या राष्ट्रगान का सम्मान करना। भाजपा जनभावना को अपने पक्ष में करने के लिए राष्ट्रवाद का बहुत चतुराईपूर्वक उपयोग करने में माहिर हाे चुकी है। इस तरह की अपीलों से भले ही देश की अर्थव्यवस्था को बूस्ट न मिले या शिक्षित युवाओं को रोजगार न मिले, लेकिन आमजन में राष्ट्रीय भावना जरूर बलवती होती है।
वास्तव में आज भाजपा राष्ट्रवादी भावना पर एकाधिकार स्थापित कर चुकी है। 2014 के बाद से ही भाजपा देश में अपना जनाधार बढ़ाती जा रही है। उसने इस दौरान न केवल दो लोकसभा चुनाव बहुमत से जीते, बल्कि अनेक राज्यों में भी सत्ता पाई। 2009 में भाजपा का राष्ट्रीय वोट-शेयर 18.6% था, जो 2019 में बढ़कर 37.4% यानी लगभग दोगुना हो गया।
हाल के सालों में भारत माता की जय का उद्घोष करने पर भी विपरीत विचार सामने आते रहे हैं। ऐसे अनेक अवसर थे, जब भारत माता की जय बोलने से इनकार करने पर लोगों को फटकार लगाई गई और उनकी पिटाई तक कर दी गई। महाराष्ट्र के विधायक वारिस पठान को भारत माता की जय नहीं बोलने पर सर्वसम्मति से विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसी परिप्रेक्ष्य में कहा था कि इस नारे का दुरुपयोग सैन्यवादी भारत के निर्माण के लिए किया जा रहा है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के साथ लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि भारत माता की जय बुलवाने को भारतीयों का भरपूर समर्थन प्राप्त है। सर्वेक्षण में लगभग 50% लोगों ने कहा कि जो यह नारा लगाने से इनकार करता हो, उसे दंडित किया जाना चाहिए।
केवल 28% ही इससे असहमत थे। राष्ट्रगान के प्रति भी ऐसा ही समर्थन सर्वेक्षण में पाया गया, जिसमें लगभग 59% लोगों ने कहा कि जो राष्ट्रगान के समय अपने स्थान पर उठ खड़ा नहीं होता, उसे सजा दी जाए। भाजपा के विचारधारागत वर्चस्व का यह आलम है कि अनुच्छेद 370 के उन्मूलन और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का विरोध करने की हिम्मत किसी विपक्षी दल ने नहीं की। उलटे अधिकतर पार्टियों ने समर्थन ही किया।
इन परिघटनाओं से भारतीय राजनीति में आमूलचूल बदलाव आ गया है। भाजपा को चुनौती देने वाला केंद्र में आज कोई नहीं बचा है। राज्यों में जरूर कुछ क्षेत्रीय दल आज भी सत्ता बनाए हुए हैं। लेकिन अब वे भी राष्ट्रवादी एजेंडा को चुनौती देने में मुश्किलों का अनुभव कर रहे हैं। 2014 के बाद से हिंदी पट्टी में भाजपा ने अपनी जमीन को काफी मजबूत बना लिया है।
शहरी वोटरों को कायम रखते हुए अब वह बड़े पैमाने पर ग्रामीण वोटरों का भी समर्थन पा चुकी है। इसे आप देशवासियों के द्वारा राष्ट्रवादी राजनीति को दिए गए अनुमोदन की तरह भी देख सकते हैं। हर घर तिरंगा से भाजपा को अपनी पैठ को और गहरा बनाने में मदद ही मिलने वाली है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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