• Hindi News
  • Opinion
  • Shashi Tharoor's Column Indian origin Leaders In The Form Of Sunak And Varadkar Are In Dialogue When England And Ireland Discuss Important Issues

शशि थरूर का कॉलम:इंग्लैंड और आयरलैंड जब अहम मसलों पर चर्चा करते हैं तो सुनक और वराडकर के रूप में भारतीय मूल के नेता संवाद कर रहे है

3 महीने पहले
  • कॉपी लिंक
शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद - Dainik Bhaskar
शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद

बीते साल भूरी त्वचा वाले, गोपूजक, भारतवंशी ऋषि सुनक यूके के प्रधानमंत्री बने, जिसका सर्वत्र स्वागत किया गया। इसने सबका ध्यान इस तरफ भी खींचा कि धीरे-धीरे भारतवंशी समुदाय (इंडियन डायस्पोरा) की पश्चिमी दुनिया में अहमियत कितनी बढ़ती जा रही है। इसकी एक झलक निजी क्षेत्र में दिखती है, जहां अग्रणी बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रमुख के रूप में भारत में जन्मे, पले-बढ़े व्यक्तियों का चयन किया जा रहा है।

पेप्सिको में इंदिरा नूयी, माइक्रोसॉफ्ट में सत्या नडेला, गूगल की पैतृक-कम्पनी अल्फाबेट में सुंदर पिचाई का चयन इसका बेहतरीन उदाहरण है कि दुनिया में दबदबा रखने वाली अमेरिकी कम्पनियों के शीर्ष पर भारतीय प्रतिभाएं आसीन हैं।

स्टैंडर्ड एंड पुअर्स 500 इंडेक्स के मुताबिक आज दुनिया की 58 अग्रणी कम्पनियों में भारतीय मूल के सीईओ हैं। यह स्थिति तब है, जब इंदिरा नूयी व वोडाफोन के पूर्व प्रमुख अरुण सरीन रिटायर हो चुके हैं, ट्विटर सीईओ पद से पराग अग्रवाल को हटा दिया गया है और दोयचे बैंक-कैंटर फिट्जराल्ड के प्रमुख रह चुके अंशु जैन का निधन हो गया है।

लेकिन अब बात केवल उद्यमियों, सीईओ, बिजनेस लीडरों तक ही सीमित नहीं रह गई है। भारतवंशियों का दबदबा विदेशी राजनीति के क्षेत्र में भी कायम होने लगा है। भारतीय मूल के अंतोनियो कोस्ता 2015 से ही पुर्तगाल के प्रधानमंत्री हैं। कोस्ता के पास भारत की विदेशी नागरिकता भी है।

वहीं लियो वराडकर 2017 से आयरलैंड के प्रधानमंत्री हैं और 2020 में इस पद के लिए पुन: चुने गए हैं। यानी इंग्लैंड और आयरलैंड आज जब पोस्ट-ब्रेग्जिट मसलों पर चर्चा करते हैं तो सुनक और वराडकर के रूप में भारतीय मूल के दो नेता आपस में संवाद कर रहे होते हैं। यह यूरोप के लिए बड़ी ही चटपटी अवस्था है। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की मां भारतीय हैं। 2024 में निक्की हेली रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवार बन सकती हैं और उनके अभिभावक भी भारतीय हैं।

क्या कारण है कि भारतीय मूल के लोग पश्चिमी जगत में सफल हो रहे हैं? क्या वजह है कि वे उन कम्पनियों और संस्थाओं का नेतृत्व कर रहे हैं, जो पश्चिम में बनी और विकसित हुई हैं और उनके पास स्थानीय प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है? कुछ लोग इसका श्रेय दो सौ साल के ब्रिटिश राज को देते हैं, जिसके कारण भारतीयों का अंग्रेजी भाषा-संस्कृति से गहरा परिचय हो गया। लेकिन इतने भर से तो कोई सफल नहीं हो जाता।

वैसे भी, अगर यही कारण रहता तो फिर गैर-अंग्रेजीभाषी यूरोपियन देशों में भारतवंशियों की सफलता का क्या कारण हो सकता है? कुछ अन्य लोग इसका कारण उस अतिरिक्त ऊर्जा और ललक को बताते हैं, जो ये प्रवासीजन अपने साथ नए देशों में लेकर आते हैं। यह कुछ हद तक सच है और भारतीय दूसरे प्रवासी लोगों की तुलना में निश्चित ही अधिक सफल हुए हैं। मिसाल के तौर पर अमेरिका में किसी भी अन्य नस्ली-समूह की तुलना में भारतीय मूल के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है।

भारत से जो पहली पीढ़ी के प्रवासी विदेशों में गए थे, उन्होंने कभी भी सुख-समृद्धि को हलके में नहीं लिया था। उन्होंने पर्याप्त अभाव झेले थे। उनके भीतर सफल और स्थापित होने की वह भूख थी, जो पश्चिमी जगत में अनेक लोगों में नहीं होती। उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते स्पर्धा में दूसरों को पीछे कर दिया।

वे भारत में वैसी कठिन परिस्थितियों में पलकर बड़े हुए थे, जो उनके पश्चिमी साथियों के लिए अकल्पनीय थीं। उन्होंने संसाधनों की कमी, सुविधाओं का अभाव, सरकारी-नियंत्रण, नौकरशाही की लेटलतीफी- इस सबको देखा था। भारतीयों को विविधता के साथ जीने की भी आदत है। हमारा इतिहास और बहुलतापूर्ण सामाजिक माहौल भारतीयों को विभिन्न भाषा, धर्म, संस्कृति के लोगों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार कर देता है।

उनके लिए किसी भी बहुराष्ट्रीय निगम में सहकर्मियों के साथ कामकाजी-सम्बंध स्थापित करना सरल हो जाता है। भारत में अपनी परवरिश के दौरान उन्होंने विनम्रता, बड़ों का सम्मान और अपने से ऊंचे ओहदे वाले व्यक्ति का लिहाज करने की मूल्य-चेतना विकसित कर ली होती है। भारतीयों के ये तमाम गुण ही उन्हें औरों से अलग और विशिष्ट बनाते हैं।

भारत से जो पहली पीढ़ी के प्रवासी विदेशों में गए थे, उन्होंने सुख-समृद्धि को हलके में नहीं लिया। उन्होंने पर्याप्त अभाव झेले थे। उनके भीतर सफल और स्थापित होने की वह गहरी ललक थी, जो पश्चिमी जगत में अनेक लोगों में नहीं होती। वे भारत में वैसी कठिन परिस्थितियों में पलकर बड़े हुए थे, जो उनके पश्चिमी साथियों के लिए नितांत अकल्पनीय थीं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)