उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी कांड के कारण जो संकट पैदा हुआ है उसका राजनीतिक नतीजा क्या हो सकता है यह समझने के लिए मैं अगर यह कहूं कि आप पंजाब के हाल पर नज़र डालिए तो कैसा रहे? या पंजाब में जो कुछ हुआ है उसके परिणाम को समझने के लिए कश्मीर घाटी में मारे जा रहे अल्पसंख्यकों की संख्या गिनने को कहूं, और इन सबके नतीजों को समझने के लिए आपको तीन दशक पीछे जाने के लिए कहूं तो?
आगे बढ़ने से पहले जरा सोचिए कि 1990-91 में हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का हाल क्या था। कश्मीर और पंजाब, दोनों में भारी उथलपुथल मची थी। पाकिस्तान के आईएसआई का इन दोनों, सबसे संवेदनशील राज्यों पर बोलबाला था। पंजाब के सिख भी उतने ही असंतुष्ट थे जितने घाटी के मुसलमान गुस्से में थे। जैसे आज तालिबान ने अमेरिका को परास्त कर दिया है, उसी तरह तब मुजाहिदीन ने रूसियों को खदेड़ दिया था और पाकिस्तान तथा आईएसआई खुद को सर्वशक्तिमान समझ रहे थे।
उस समय भारत में भी काफी राजनीतिक अस्थिरता थी। वी.पी. सिंह व चंद्रशेखर की सरकारें जल्दी-जल्दी विदा हो चुकी थीं, राजीव गांधी की हत्या के बाद पी.वी. नरसिम्हा राव अल्पमत वाली सरकार चला रहे थे। तूफान ऐसा ही तो होता है। आज हमारी हालत वैसी कतई नहीं है। केंद्र में आज एक मजबूत सरकार है।
पाकिस्तान काफी कमजोर हो चुका है। पंजाब में शांति बनी रही है और कश्मीर बड़े उपद्रव से मुक्त है। लेकिन कोई भी देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता करना तब नहीं शुरू करता जब पानी गले तक ऊपर आ गया हो। आप खामियों और चेतावनियों को पहले ही पहचानने लगते हैं। इनमें से कुछ ये रहीं...
उत्तर प्रदेश में पीलीभीत और लखीमपुर खीरी, पड़ोसी उत्तराखंड में उधम सिंह नगर ऐसे इलाके हैं जहां समृद्ध सिखों की अच्छी-ख़ासी आबादी है। सिख सख्त जिंदगी जीने के आदी होते हैं। पंजाब में आतंकवाद वाले दिनों का काफी असर यहां भी हुआ था और कुछ फर्जी एनकाउंटर भी हुए थे। यहां तक कि 2016 में भी ऐसे एक एनकाउंटर के लिए उत्तर प्रदेश के 47 पुलिसवालों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई, जिन्होंने 1991 में पंजाब से लौट रहे 10 सिख तीर्थयात्रियों को आतंकवादी बताकर उनकी हत्या कर दी थी।
अब मैं आपको बताऊंगा कि आज यह सब मेरे दिमाग में क्यों उभरा। मैं निर्माता रॉनी लाहिड़ी और निर्देशक शूजित सरकार की फिल्म ‘सरदार उधम’ के कलाकारों से बात कर रहा था। शहीद उधम सिंह को, जिनका किरदार विकी कौशल ने निभाया है, पीढ़ियों से इसलिए पूजा जाता रहा है कि उन्होंने जालियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए इसके दोषी माइकल ओ’डायर की 21 साल बाद ब्रिटेन में हत्या की थी। उनकी स्मृति के सम्मान में ही लखीमपुर खीरी के पास के जिले का नाम उधम सिंह नगर रखा गया।
इस बारे में हम और ज्यादा कुछ न कहें। पंजाब के संदर्भ में मैं कई बार कह चुका हूं कि कभी भी नकारात्मक तस्वीर न पेश करें। होशियार पीढ़ियां उन चिनगारियों को हवा नहीं देतीं जिन्हें उन्होंने देश में आग लगाते देखा है और फिर अपने जीवनकाल में उसे बुझाते रहे हैं। कश्मीर की पुरानी समस्या की हल है पंजाब में अमन। 30 साल पहले जानी-पहचानी बाहरी कुटिल ताकतों को दोनों राज्यों में आग लगाने का मौका मिल गया था। वह मौका फिर नहीं देना चाहिए।
जल्द पहचानें खामियां
जरा सोचिए कि 1990-91 में हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का हाल क्या था। कश्मीर और पंजाब, दोनों में भारी उथलपुथल मची थी। आज हमारी हालत वैसी कतई नहीं है। केंद्र में आज एक मजबूत सरकार है। पाकिस्तान काफी कमजोर हो चुका है। पंजाब में शांति बनी रही है और कश्मीर बड़े उपद्रव से मुक्त है। लेकिन कोई भी देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता करना तब नहीं शुरू करता जब पानी गले तक ऊपर आ गया हो। आप खामियों और चेतावनियों को पहले ही पहचानने लगते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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