कोविड महामारी देश में जंगल की आग की तरह भड़क गई है। इसे स्थायी रूप से बुझाने का एक उपाय है, सब तक टीका पहुंचाना। पिछले साल जब कोविड के टीके पर काम हो रहा था, तब भारत तसल्ली से बैठा था क्योंकि यहां दो वैक्सीन के उपाय दिख रहे थे। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) की ऑक्सफोर्ड में बनी एस्ट्राज़ेनेका की कोवीशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन। चूंकि SII ने अन्य देशों को सप्लाई का वादा किया है, भारत में सप्लाई हमारी जरूरत से बहुत कम है। दूसरी ओर, भारत बायोटेक को बड़ी मात्रा में वैक्सीन बनाने में समय लगेगा। देश की 10% आबादी को अभी एक ही टीका लगा है और वैक्सीन की कमी की खबरें हैं।
देश में कोविड केस की संख्या बढ़ने से मांग उठी कि 18 की उम्र से ऊपर सभी को पात्र होना चाहिए। इसीलिए सरकार ने घोषणा की कि एक मई से वैक्सीन सबके लिए उपलब्ध होगी। साथ ही यह भी कह डाला कि दोनों कंपनियां कीमत निर्धारित कर सकती हैं। SII कोवीशील्ड को तीन अलग दामों पर, केंद्र सरकार को रु.150, राज्य को 300, निजी क्षेत्र को 600 रुपए में और भारत बायोटेक 600-1200 रुपए में बेचना चाहती है। इसमें सरकार और कंपनियों, दोनों का दोष है।
कंपनी का इसलिए क्योंकि वह अपनी ‘मोनोपॉली’ का नाजायज़ फायदा उठा रही हैं, जान बचाने की वस्तु पर मुनाफ़ाखोरी की कोशिश में हैं। इससे कई नुकसान होंगे। राज्य सरकार के पास राजस्व के स्रोत कम हैं और वह केंद्र पर निर्भर भी है। यदि वह केंद्र की तरह लोगों के लिए वैक्सीन खरीद रही है, तो उसे भी सस्ते दाम पर मिलनी चाहिए। फिर आई बात कि क्या निजी क्षेत्र को ऊंचे दाम पर देना ठीक है? इससे हानि यह है कि यदि इसकी अनुमति होगी तो कंपनी पहले उसे देगी, जो ऊंचा भाव देगा। इससे जनहित का नुकसान है। जो चीज सस्ते में मिल सकती है, उसके लिए सबको ज्यादा पैसा देने होंगे।
दूसरी ओर, इससे गरीबों का नुकसान होगा क्योंकि वे उस भाव पर शायद टीकाकरण ना करवा सकें। याद रहे, अधिकतर राज्यों में नरेगा की दिहाड़ी मजदूरी 450 रुपए से कम है। यदि गरीब टीका न करवा सके तो इससे अमीरों का भी नुकसान है, क्योंकि टीकाकरण प्रभावी तब होगा जब देश की 50-80% जनसंख्या को टीका लग जाएगा। इस समय सभी वर्गों का हित इसमें है कि मुफ्त में और व्यापक टीकाकरण हो।
टीकाकरण की व्यवस्था करना सरकारी जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार को दोनों कंपनियों को एक ही दाम पर सबको सप्लाई करने के लिए मजबूर करना होगा। देश के कानून में इसका प्रावधान भी है। आपूर्ति के लिए सबसे बड़ी बाधा है उत्पादन क्षमता, जिसे अस्वाभाविक रूप से संकुचित किया जा रहा है, क्योंकि केवल दो ही कंपनियों को वैक्सीन बनाने की इजाजत है।
अंतरराष्ट्रीय कानून में ‘कंपल्सरी लाइसेंसिंग’ का प्रावधान है, जिससे सरकार टीके का फॉर्मूला (पेटेंट) मुफ्त कर सकती है, ताकि अन्य कंपनी भी उसे बना सकें। ताज्जुब यह है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस लड़ाई (पेटेंट फ्री) को लड़ रहा है, लेकिन इसे देश में लागू नहीं कर पा रहा। जो काम केंद्र को करना चाहिए, वह भारत बायोटेक को करने दे रही है।
आपूर्ति और कीमत के अलावा, टीकाकरण तुरंत बढ़ाने में सरकार तीसरी बाधा खड़ी कर रही है। मूल स्वास्थ्य सुविधाओं, ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड या टीका लगवाने के लिए आधार पर, रजिस्ट्रेशन के लिए ऐप के उपयोग पर, ज़ोर डाला जा रहा है। समय की मांग तो यह है कि जल्द सभी बाधाएं हटाई जाएं, कंपल्सरी लाइसेंसिंग से सप्लाई बढ़ाई जाए, एक-ही कीमत का समझौता हो और बिना कड़ी कागजी या तकनीकी कार्रवाई के सबको मुफ्त में टीका मिले।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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