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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:शैतान भगवान की बात को न सुनता है, न समझता है पर साधु भगवान के संकेत पकड़ लेता है, शैतान और साधु के बीच यहीं अंतर

2 वर्ष पहले
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम 
Facebook:Pt. Vijayshankar Mehta - Dainik Bhaskar
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम Facebook:Pt. Vijayshankar Mehta

छोटे दिल व कुटिल दिमाग वाले लोग जब बड़ी बातें करते हैं तो अच्छा नहीं लगता। रावण ने अपने कठोर संकल्प से बड़े से बड़ा तप तो कर लिया, लेकिन भीतर की अशुद्धि मिटाने का कोई प्रयास नहीं किया। हमारे नौवें द्वार का संबंध शौच शुद्धि से है। यानी स्वछता। बाहर की भी, भीतर की भी। हमारे भीतर इतनी गंदगी भरी हुई है और चाहते हैं बाहर की उपलब्धियों से शांत हो जाएं, तो यह हो नहीं सकता। हमारा लोभ, अहंकार हमें और उलझाता है।

श्रीराम रावण के मस्तक काट रहे थे तो तुलसीदासजी ने लिखा- ‘काटत बढ़हिं सीस समुदाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई।’ काटते ही सिरों का समूह बढ़ जाता, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है। जिस प्रकार लाभ पर लोभ बढ़ता है, वैसे ही सेवा से कभी-कभी अहंकार बढ़ जाता है। रावण विद्वान था, तपस्वी था, फिर भी भगवान की इच्छा को समझ नहीं पा रहा था।

साधु और शैतान के बीच यही अंतर होता है। शैतान भगवान की बात को न सुनता है, न समझता है, पर साधु तो संकेत पकड़ लेता है। ईश्वर की इच्छा से जरा भी अलग न चलने का नाम ही संतत्व है। कुंभ का समापन लगभग हो चुका है। यह परमात्मा के संकेत को पकड़ने जैसा है। कुंभ तो प्रतिपल पूरा है, इसलिए वह अधूरा कभी नहीं माना जा सकता।