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अजय देवगन ने 2015 में ‘दृश्यम’ फिल्म बनाई थी जो 2013 में दक्षिण भारत में बनी फिल्म से प्रेरित थी। पिछले दिनों ‘दृश्यम-2’ अमेज़न पर प्रदर्शित हुई और इसके हिंदीकरण के अधिकार भी अजय ने खरीदे हैं। भाग-2 की शूटिंग इसी वर्ष होगी। इस सफल फिल्म के निर्देशक जीतू जोसेफ हैं। मुख्य भूमिका में मोहनलाल हैं। दरअसल इन फिल्मों की प्रेरणा जापानी उपन्यास ‘द डिवोशन ऑफ सस्पेक्ट एक्स’ से ली गई है। अजय और तब्बू अभिनीत ‘दृश्यम’ भाग एक के साथ ही भाग 2 बनाया जाएगा।
ज्ञातव्य है कि ‘दृश्यम-1’ में आला पुलिस अफसर का बिगड़ैल किशोर, लड़कियों के आपत्तिजनक चित्र लेता है और उन्हें वायरल करने की धमकी देकर उनके साथ हमबिस्तर होना चाहता है। वह किशोरी को बचाने का प्रयास करने वाली मां से कहता है कि अपनी पुत्री को बचाने के लिए मां उसका स्थान ले सकती है। इसी कारण पुत्री के हाथों उस बिगड़ैल की हत्या हो जाती है।
अजय वीडियो लाइब्रेरी चलाता है। वह मिडिल स्कूल तक ही पढ़ा है परंतु फिल्में देखने को शिक्षाप्रद मानता है। घर लौटकर उसे सब पता चलता है। वह लाश को मकान के पिछले भाग में गाड़ देता है। फिर पुलिस के डर से देर रात वह लाश की जगह एक मरे हुए कुत्ते को गाड़ देता है और लाश को पुलिस स्टेशन की नई बन रही इमारत में गाड़ देता है।
‘दृश्यम भाग-2’ का प्रारंभ होता है जब एक व्यक्ति यह कहता है कि 6 वर्ष पूर्व उसने अजय अभिनीत पात्र को नए बन रहे पुलिस स्टेशन से देर रात बाहर आते देखा है। पुलिस के आला अफसर को यह ज्ञात होते ही वह प्रकरण की जांच पुन: करने की आज्ञा प्राप्त कर लेता है। अब पुलिस अपने अपमान का बदला लेना चाहती है। अत: अजय अभिनीत पात्र को पुन: पूछताछ के लिए बुलाते हैं।
आला अफसर पूरे परिवार को ही उसके थाने में दिए गए इकरारनामे के आधार पर गिरफ्तार करना चाहते हैं। यानी की खुदाई करके कंकाल निकाला जाता है। फॉरेन्सिक विभाग वाले प्रथम परीक्षण के बाद कहते हैं कि कंकाल का डीएनए उस गुमशुदा किशोर से मिलता है। कंकाल को वृहद परीक्षण के लिए प्रांत की राजधानी की प्रयोगशाला में भेजा जाता है।
नायक प्रयोगशाला में कंकाल के बदले अन्य किशोर का कंकाल रख देता है। अदालत के सामने प्रयोगशाला की रपट आती है और कंकाल उस बिगड़ैल किशोर का नहीं पाया जाता। उसी आधार पर नायक निर्दोष सिद्ध होता है। पुलिस को दूसरी बार पराजय का अपमान भुगतना पड़ता है। सिनेमा देखकर शिक्षा पाने वाले की विजय दूसरी बार भी होती है। दरअसल सिनेमा आस्वाद को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
वर्तमान में हम मनुष्य का रोबोकरण करना चाहते हैं कि सब एक सा विचार करें, एक से कपड़े पहनें और नाम की जगह नंबर से पुकारे जाएं। कथा का नायक सिनेमाघर का निर्माण करता है। वीडियो लाइब्रेरी के बाद उसके अपने विकास का यह दूसरा चरण है। तीसरे चरण में वह स्वयं की लिखी कथा पर फिल्म बनाना चाहता है। अपनी कथा के कॉपीराइट के लिए उसका पुस्तक के रूप में प्रकाशन करवा लेता है। फिल्म के पूंजी निवेशक और उसके बीच क्लाइमैक्स को लेकर विवाद चलता है।
भाग 2 का घटनाक्रम 6 वर्ष बाद का बताया गया है। ज्ञातव्य है कि किसी गुमशुदा की तलाश 7 वर्ष बाद बंद कर दी जाती है और उसे अधिकृत रूप से मृत घोषित किया जाता है। फ़िल्मकार जीतू जोसफ ने हर बात पर गहरा विचार करके फिल्म को विश्वसनीय बनाया है। उत्तम प्रदेश या रूरीटेनिया के थानों में खुदाई की जाए तो नरकंकाल मिलेंगे। आंदोलन में गुमशुदा लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। मारिया पुजो ने ‘गॉडफादर’ में लिखा है कि हर पूंजीवादी के घर की अलमारी में कोई कंकाल अवश्य निकलता है।
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