केवल मई की जानकारी देखें तो 6 राज्यों में सभी कारणों से 2019 की तुलना में 4.2 लाख ‘अधिक मौतें’ हुईं, जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन राज्यों में मई में 34 हज़ार लोग कोविड़ से मरे। जैसे-जैसे दूसरी लहर धीमी पड़ रही है, देश नुकसान का जायज़ा ले रहा है। पिछले कुछ महीनों में हुई मौतें गिनना आसान नहीं।
2021 में ‘अधिक मौतों’ का हिसाब लगाने के लिए, 2019 को ‘सामान्य’ साल मान रहे हैं। पिछले कुछ हफ्तों में कई पत्रकारों ने अलग-अलग राज्य से डैथ सर्टिफिकेट का डेटा निकाला है। कहीं 6 महीनों की जानकारी मिली, तो कहीं 1-2 महीनों की।
गुजरात में दैनिक भास्कर ने ही अभियान चलाकर मृत्यु प्रमाणपत्र का डेटा हासिल किया। दो महीनों में 1.23 लाख मृत्यु सर्टिफिकेट दिए गए, जबकि 2015-2018 की मृत्यु दर के अनुसार लगभग 82 हज़ार मौत होती। इससे पता चला कि मई में लगभग 43 हज़ार अधिक मौतें हुईं। यह वास्तविक गिनती से कम हो सकती हैं क्योंकि दूसरी लहर के दौरान कुछ लोगों ने मृत्यु पंजीकरण न किया हो।
इस दौरान, गुजरात सरकार ने 2685 कोविड मौतें गिनी थीं। जो 43 हज़ार अधिक मौतें हुई, क्या सभी कोविड से थीं? ऐसा नहीं मान सकते क्योंकि महामारी के चलते अन्य बीमारियों से मौतें बढ़ सकती हैं। तालाबंदी के दौरान, यदि प्रसव के लिए अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो या सभी डॉक्टर कोविड से जूझ रहे हों, तो हो सकता है अन्य मरीज़, जो बचाए जा सकते थे, वे छूट गए हों।
दूसरी ओर हमें पता है कि कई लोग ऐसे हैं जो कोविड टेस्ट होने से पहले ही गुजर गए। यदि कोविड मरीज़ को डायबिटीज थी, तो मौत का कारण कोविड नहीं दर्ज़ किया गया। इन सबसे अनुमान लगा सकते हैं कि इन 43 हज़ार अधिक मौतों में कई कोविड से हुईं और सरकार महामारी के प्रकोप को कम आंक रही है।
मध्य प्रदेश में मई में 1.3 लाख अधिक मौतें हुईं और राज्य सरकार ने 2451 कोविड मौतें दर्ज कीं। बिहार में मई में 51 हज़ार अधिक मौतें हुईं। यह भी शायद पूरी कहानी नहीं क्योंकि बिहार में 2019 में केवल आधी मौतें (52%) सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम में दर्ज हो रही थीं।
दक्षिण के राज्यों में लोगों की गिनती बेहतर हो रही है क्योंकि वहां व्यवस्था बेहतर है। उदाहरण के लिए तमिलनाडु में मई 2021 में 45 हज़ार अधिक मौतें हुईं। तमिलनाडु और मप्र की कुल जनसंख्या लगभग एक समान है, 8.5 करोड़ के आसपास। जहां मप्र में 1.3 लाख अधिक मौतें हुईं, वहीं तमिलनाडु में 45 हज़ार। कर्नाटक और गुजरात की जनसंख्या में खास फर्क नहीं और इन दोनों में अधिक मौतें भी 42-43 हज़ार हुई, लेकिन जहां गुजरात में केवल 2685 कोविड से मानी गईं, वहीं, कर्नाटक में 13,569 को सरकारी आंकड़ों में कोविड मौत माना गया।
एक तरफ दुनिया ‘बिग डेटा’ को लेकर बावली हो रही है, वहीं देश में मूल आंकड़ों पर कितना संघर्ष है। केवल आंकड़ों को ‘रियल टाइम’ में एकत्रित करने से देश की किसी भी आर्थिक, सामाजिक या राजनैतिक समस्या का समाधान नहीं हो सकता। उसके लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिए। महामारी के चलते देश को भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
कुछ अनुमानों के अनुसार लगभग 10 लाख लोग मारे गए हैं। इसके अलावा आर्थिक रूप से देश की बड़ी जनसंख्या प्रभावित हुई है। एक अनुमान के अनुसार 97% आबादी प्रभावित हुए हैं। दूसरी तरफ, केवल 3% लोग बचे रहे, जिनमें कुछ हज़ार ऐसे भी हैं, जो इस दौरान और अमीर हुए हैं। देश में आर्थिक असमानता और बढ़ी है।
पिछले कुछ हफ्तों में देश के लोकतंत्र में पत्रकारिता की अहमियत उजागर हुई है। गुजरात में भास्कर के अभियान के चलते अन्य अख़बार भी लोगों के मुद्दों पर नज़र रखने लगे हैं। कितने ही दु:खद क्यों न हो, देश के सामने मुश्किल सवालों पर चर्चा ज़रूरी है। किसने कितनी ज़ोर से ताली बजाई, उसे पत्रकारिता के रूप में कबूल नहीं करना चाहिए।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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