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इतनी भाग-दौड़ भी किस काम की कि जिस दिन दौड़ना पड़े, उस दिन भागने लगें और जहां भागना हो, वहां दौड़ने लगें। इसे गलती नहीं, नादानी कहेंगे। आइए, पहले दौड़ने को समझ लें। दौड़ने में एक प्रतिस्पर्धा है। ऐसा करते समय दृष्टि दूसरों पर रखिए, क्योंकि वे भी दौड़ रहे हैं। अपने प्रतिस्पर्धी की पूरी जानकारी रखें, क्योंकि आपको आगे निकलना है। यहां गति तो बनाए रखना है, पर थकना भी नहीं है। ज्यादातर दुनिया आज इसी दौड़ में शामिल है।
भागना थोड़ा अलग मामला है। इसमें पलायन का भाव होता है। कई स्थितियां ऐसी होती हैं, जहां आपको भागना पड़ता है, पीछे हटना पड़ता है, रणछोड़ बनना पड़ता है। तो जब भागने की नौबत आए, खुद के भीतर भागिए। स्वयं से साक्षात्कार करिए, अपनी नजर अपने ही ऊपर रखिए। हो सकता है जीवन में दौड़ना और भागना समानांतर चले।
जीविका चलाना है तो दौड़िए, जीवन बचाना है तो भीतर भागिए। कोरोना फिर लौटकर आ गया। सच तो यह है कि वह गया ही नहीं था। वह तो रास्ता देख रहा था कि मनुष्य की मूर्खताएं कब बढ़ें और मैं लौटूं। अब इस समय दौड़ना भी है। शायद लॉकडाउन न हो, इसलिए दौड़ना जारी रहेगा, लेकिन उससे भी अधिक सावधानी रखना है। इसलिए भागिए। सचमुच कुछ स्थितियों में भीतर भागिए। यह भागना कमजोरी या कायरता नहीं, बल्कि आपकी समझदारी होगी।
पॉजिटिव- आप अपने काम को नया रूप देने के लिए ज्यादा रचनात्मक तरीके अपनाएंगे। इस समय शारीरिक रूप से भी स्वयं को बिल्कुल तंदुरुस्त महसूस करेंगे। अपने प्रियजनों की मुश्किल समय में उनकी मदद करना आपको सुखकर...
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