रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति की समीक्षा में उम्मीद के मुताबिक हर चीज अपरिवर्तित रखी। निश्चित रूप से कोरोना के ओमिक्रॉन स्ट्रेन के कारण आई अिनश्चितता ने इस निर्णय को प्रभावित किया होगा और दरों में बदलाव का कोई भी कदम उठाने से पहले आरबीआई को थोड़ा और इंतजार करने की जरूरत है। आइए, इसके कुछ प्रभावों पर बात करते हैं।
पहला, आरबीआई अभी भी आने वाले महीनों में वृद्धि को लेकर आश्वस्त नहीं है। इसलिए जबकि सरकार 10-11% की उच्च वृद्धि दर पर सकारात्मक है, आरबीआई 9.5% वृद्धि दर के अनुमान पर कायम है। अधिक महत्वपूर्ण आरबीआई की टिप्पणी है, जिसमें कहा गया कि जबकि वृद्धि पटरी पर दिखाई दे रही है, पर स्थायित्व पहलू पर चिंता है। ये महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में वृद्धि दर के आंकड़ों में बहुत उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, जिसने संदेह बढ़ाया है।
यहां तक कि अक्टूबर की 3.1% औद्योगिक उत्पादन दर निश्चित रूप से निरुत्साहित करने वाली है, क्योंकि यह बताती है कि त्योहारी मौसम में मांग में आई तथाकथित तेजी पूरी तरह सच नहीं थी। जबकि ई-कॉमर्स समेत दूसरे खुदरा आउटलेट में बिक्री अच्छी रही, पर घरेलू सामान के उत्पादन में वैसी गति नहीं रही और इसलिए इस महीने में नकारात्मक वृद्धि दिख रही है। सीधा-सा नियम ये है कि महीने की वृद्धि दिखाने वाले नंबर अगर लगातार तीन महीने तक टिके रहें, तो ही हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वृद्धि बनी रहेगी।
दूसरा आरबीआई ने समझौतापरक रवैया बरकरार रखा हुआ है। इसका मतलब ये है कि केंद्रीय बैंक तरलता बनाए रखने के लिए मौजूद रहेगा, ताकि इंडस्ट्री और दूसरे कर्जदारों के लिए फंड्स की कमी ना पड़े। साथ ही मौद्रिक नीति कमेटी के सामने ब्याज दरों में वृद्धि का कोई आसन्न कारण नहीं है। आरबीआई के कदम पर नजर रखने वाले उद्योग जगत को इससे थोड़ी राहत मिली है, विशेष तौर पर जब मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
तीसरा मुद्रास्फीति पर आरबीआई का मत सालभर के लिए अपरिवर्तित है और इसके औसत 5.3% रहने की उम्मीद है। आरबीआई ने गैर-ईंधन, गैर-खाद्य चीजों की महंगाई दर बढ़ने की आशंका जाहिर की है। ये महत्वपूर्ण है क्योंकि मूलभूत मुद्रास्फीति (कोर इंफ्लेशन) वैसे भी बढ़ रहा है, जो चिंता की बात है। व्यक्तिगत उत्पादों, मनोरंजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, कपड़े वैसे ही महंगे हो रहे हैं।
यहां समस्या ये है कि एक बार जब इन सेवाओं/ उत्पादों के दाम ऊपर जाते हैं, तो इनके कम होने की बहुत कम संभावना होती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने कल ही नवंबर की खुदरा महंगाई दर जारी की। इसके अनुसार नवंबर में खुदरा महंगाई दर 4.35 से बढ़कर 4.91% हो गई है।
इस श्रेणी के सामान पिछले कुछ महीनों से मुद्रास्फीति बढ़ा रहे हैं। आगे जबकि सरकार ने उत्पाद शुल्क, पेट्रोल और डीजल के दामों में कटौती की है, अधिकांश जगहों पर इनके दाम 100 रुपए प्रति लीटर से ऊपर बने हुए हैं, माल ढुलाई लागत में 10-30% की वृद्धि हुई है, जो कि दूसरे सामान की लागत में जुड़ जाता है। यह सब आम आदमी को कैसे प्रभावित करता है?
पहला, बचत करने वालों के लिए। भले ही मुद्रास्फीती बढ़ती रहे, लेकिन ब्याज दरें भविष्य में नहीं बढ़ने वाली। खाद्य तेल, दालों और सब्जियां के दाम भी तेजी से बढ़े हैं और आरबीआई जिस 5.3 प्रतिशत खुदरा मुद्रास्फीति की बात कर रही थी, वह इसमें नहीं झलकता। कुछ बैंकों ने जमा राशि पर ब्याज दर बढ़ाई है, पर इसे ट्रेंड के तौर पर नहीं देखना चाहिए।
दूसरा, कर्जदारों के लिए यह अच्छा समय है कि वे अपना कर्ज तेजी से चुका दें। होम लोन चाहने वालों को भी अभी लोन ले लेना चाहिए क्योंकि दरें फिलहाल तो नहीं बढ़ने वाली। ऑटोमोबाइल्स के लिए बैंक से कर्ज लेने का यह सही समय है, हालांकि सेमी-कंडक्टर की कमी के कारण इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
तीसरा, आने वाले महीनों में भी लोगों को भारी महंगाई के लिए तैयार रहना होगा। रिजर्व बैंक ने भले ही इशारा किया था कि दिसंबर में सब्जियों के दाम कम होंगे, पर ऐसा दिख नहीं रहा है। मॉनसून की देर से विदाई और नवंबर-दिसंबर में बेमौसम बरसात के कारण टमाटर-प्याज की फसलों को नुकसान पहुंचा।
इंडस्ट्री के लिए क्या है? तरलता के मुद्दे पर तो कोई दिक्कत नहीं और दरें भी उदार बनी रहेंगी। मुद्दा यहां ये है कि बड़ी कंपनियों ने वित्तीय छूट का फायदा लेना कम कर दिया है, वे कर्ज वापसी कर रही हंै और इसलिए फंड्स की मांग भी कम है। इसलिए सिस्टम में पैसों सरप्लस लिक्विडिटी बनी हुई है। विकास प्रक्रिया को निवेश में तेजी के साथ शुरू करना होगा। ये शायद वित्त वर्ष 2022 में नहीं होगा और हमें अगले वित्तीय वर्ष तक का इंतजार करना होगा।
और अंतिम, बाजार में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है ये सरकारी प्रतिभूतियों के यील्ड (एक तरह से ब्याज) से पता चल जाता है। ये बाजार की प्रतिक्रिया के संकेत होते हैं। नीति की घोषणा के बाद ये अपरिवर्तित रहे। बहरहाल, अब बजट ही अगली बड़ा कदम होगा, जिसका फरवरी में इंतजार रहेगा। जिसके बाद आरबीआई फिर से अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगा। इसके बाद ही आगे का रास्ता मिलेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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