अगर इजरायल की नई सरकार के बारे में प्रेसिडेंट बाइडेन को मुझे एक पत्र लिखना होता तो वह कुछ इस प्रकार से होता : प्रिय प्रेसिडेंट महोदय, मुझे पता नहीं यहूदियों के इतिहास में आपको कितनी दिलचस्पी है, लेकिन यहूदियों का इतिहास जरूर आज आपमें दिलचस्पी लेना चाहता है। इजरायल एक ऐतिहासिक बदलाव के मोड़ पर है।
वह एक पूर्णकालिक लोकतंत्र हुआ करता था, लेकिन अब उसकी कमान अलोकतांत्रिक ताकतों के हाथ में चली गई है। वह अपने क्षेत्र में स्थायित्व लाने वाली सत्ता हुआ करता था, लेकिन अब वह अस्थायित्व को बढ़ावा देने वाला देश बनता जा रहा है। आप चाहें तो बेंजामिन नेतन्याहू और उनके अतिवादी गठबंधन साझेदारों को ऐसा करने से रोक सकते हैं।
इसके बाद मैं प्रेसिडेंट बाइडेन से यह भी कहता कि इजरायल खतरनाक अंदरूनी संघर्षों की ओर भी बढ़ रहा है। किसी भी देश में आंतरिक असंतोष का कारण कोई एक नीति नहीं होती। मौजूदा हालात के मूल में नागरिक-वर्चस्व की लड़ाई है- इस बात की जद्दोजहद कि कौन किसको बताएगा समाज में किस तरह से रहना चाहिए। इजरायल की कथा संक्षेप में यह है कि नेतन्याहू ने मात्र 30 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीता था, जिसके बाद उन्होंने एक धुर राष्ट्रवादी और रूढ़िवादी सरकार का गठन किया।
इस सरकार के क्रियाकलापों को उसे वोट नहीं देने वाले नागरिकों का बड़ा वर्ग न केवल भ्रष्ट मानता है, बल्कि सिविल अधिकारों के लिए खतरा भी समझता है। यही कारण है कि बीते सप्ताहांत तक सरकार-विरोधी प्रदर्शनों में शिरकत करने वालों की संख्या बढ़कर 80 हजार तक पहुंच गई है। बाइडेन जिस इजरायल को जानते थे, वह अब धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है और उसके स्थान पर एक नया इजरायल उभरकर सामने आ रहा है।
इस सरकार के अनेक मंत्री अमेरिकी मूल्यों के विरोधी हैं और लगभग सभी डेमोक्रेटिक पार्टी की मुखालफत करते हैं। नेतन्याहू और उनके मंत्री रॉन डेर्मेर ने 2015 में अमेरिका में रिपब्लिकनों से मिलकर एक स्पीच आयोजित करवाई थी, जिसमें ओबामा व बाइडेन की नीतियों का विरोध किया गया था। वे व्हाइट हाउस में किसी रिपब्लिकन को देखना चाहते हैं और उदारवादी यहूदियों की तुलना में बाइबिल में गहरी आस्था रखने वाले ईसाइयों का समर्थन करना पसंद करते हैं।
बहुत सम्भव है कि इजरायल में जो हो रहा है, उसकी व्याख्या जो बाइडेन के समक्ष उसके अंदरूनी संवैधानिक मामलों की तरह की जाकर उन्हें गुमराह किया जाए। उन्हें हिदायत दी जाए कि वो इस सबसे खुद को दूर रखें। जबकि बाइडेन को इस मामले में सीधा हस्तक्षेप करना चाहिए, क्योंकि इजरायल में जो होता है, उसका सीधा सरोकार अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हितों से होता है।
मुझे ऐसी कोई गलतफहमी नहीं है कि बाइडेन इजरायल की समस्याओं का हल कर सकते हैं, लेकिन कम से कम वो अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए सबसे बुरी स्थिति को टाल जरूर सकते हैं। यह वे ही कर सकते हैं। सबसे बड़ा संकट यह है कि इजरायल की अदालतें- जिनकी अगुवाई सुप्रीम कोर्ट करती है- हमेशा से मानवाधिकारों, विशेषकर अल्पसंख्यकों के अधिकारों की प्रबल संरक्षक रही हैं।
इन अल्पसंख्यकों में अरब नागरिक, एलजीबीटीक्यू समुदाय और सुधारवादी यहूदी भी शामिल हैं, जो ऑर्थोडॉक्स यहूदियों जितनी स्वतंत्रता चाहते हैं। चूंकि इजरायल की सुप्रीम कोर्ट कार्यपालिका की सभी शाखाओं के कार्यों की समीक्षा करती है, जिसमें सेना भी शामिल है, इसलिए वह फलस्तीनियों के अधिकारों का भी संरक्षण करती है। लेकिन मौजूदा सरकार वेस्ट बैंक में चीजों को नाटकीय रूप से बदल देना चाहती है और वास्तव में वह उस पर धावा बोलकर उसका इजरायल में अनधिकृत रूप से विलय कर लेना चाहती है।
इस प्लान में एक ही चीज राह का रोड़ा बनी हुई है- इजरायल की सुप्रीम कोर्ट और उसकी वैधानिक संस्थाएं। टाइम्स ऑफ इजरायल अखबार ने हाल ही में लिखा है कि नेतन्याहू अपने देश के न्यायिक तंत्र में आमूलचूल बदलाव कर देना चाहते हैं, जिससे सरकार को जजों की नियुक्ति पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हो जाए। इससे हाईकोर्ट के अधिकार भी सीमित हो जाएंगे। यह सीधे-सीधे तुर्की-हंगेरियन बहुसंख्यकवादी परिपाटी का पालन करना होगा। याद रहे, खुद नेतन्याहू पर आज अदालत में धोखाधड़ी और घूसखोरी के मुकदमे चल रहे हैं!
इजरायल सरकार वेस्ट बैंक में चीजों को नाटकीय रूप से बदल देना चाहती है और उस पर धावा बोलकर उसका अनधिकृत रूप से अपने में विलय कर लेना चाहती है। न्यायपालिका इसमें रोड़ा बन रही है।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)
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