थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम:रूस और चीन से एक साथ लड़ाई मोल लेना कतई समझदारी नहीं

10 महीने पहले
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थॉमस एल. फ्रीडमैन,तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार - Dainik Bhaskar
थॉमस एल. फ्रीडमैन,तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार

मैं हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी का सम्मान करता हूं, लेकिन ताइवान जाकर उन्होंने लापरवाही से भरी खतरनाक हरकत की है। इससे ताइवान पहले से ज्यादा सुरक्षित नहीं हो गया है, लेकिन अमेरिका जरूर दो-दो एटमी ताकतों के साथ अप्रत्यक्ष लड़ाई में सम्मिलित हो गया है- एक तरफ रूस, दूसरी तरफ चीन। अगर ताइवान पर अमेरिका और चीन में लड़ाई छिड़ी तो आपको क्या लगता है, यूरोपियन सहयोगी हमारा साथ देंगे? आप खुशफहमी में हैं।

यूरोप तो यूक्रेन की लड़ाई से ही खस्ताहाल है और अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में ऐसे क्षण आते हैं जब हमें लक्ष्य पर नजर जमाए रखना होती है। आज हमारा लक्ष्य क्या है? यह सुनिश्चित करना कि यूक्रेन अगर पुतिन को पीछे हटने पर मजबूर नहीं कर देता तो कम से कम डटकर मुकाबला जरूर करता रहे। क्योंकि अगर पुतिन की चली तो पूरा यूरोप अस्थिर हो जाएगा।

इसी के मद्देनजर प्रेसिडेंट बाइडेन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवन ने बीजिंग से आग्रह किया था कि वह यूक्रेन-युद्ध में सहभागिता करने से बचे और रूस को सैन्य-मदद मुहैया न कराए। एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने मुझसे निजी चर्चा में बताया कि बाइडेन ने शी जिनपिंग से व्यक्तिगत रूप से बात की थी और कहा था कि अगर चीन यूक्रेन-युद्ध में प्रवेश करता है तो वह अपने दो सबसे महत्वपूर्ण निर्यात-बाजार गंवा देगा- अमेरिका और यूरोपियन यूनियन।

चीन ने बात मानी और अभी तक पुतिन को कोई सैन्य-मदद नहीं दी, जबकि अमेरिका निरंतर यूक्रेन की मदद कर रहा है। वैसे में चीन को उकसाने की क्या तुक है? आखिरी बार 1997 में हाउस स्पीकर न्यूट गिनग्रिच ने ताइवान की यात्रा की थी, लेकिन तब चीन आर्थिक और सैन्य रूप से आज की तुलना में कहीं कमजोर था। नैन्सी पेलोसी की टाइमिंग भी बदतर है। यूक्रेन-युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है। अमेरिकी अधिकारीगण यूक्रेनी नेतृत्व को लेकर भी चिंतित हैं।

व्हाइट हाउस और जेलेंस्की के बीच अविश्वास बढ़ रहा है। बीते महीने जेलेंस्की ने यूक्रेन के प्रोसिक्यूटर जनरल और घरेलू खुफिया एजेंसी के प्रमुख को पद से हटा दिया। क्यों? किसी को नहीं पता। ऐसा लग रहा है कि हम यूक्रेन के अंदरूनी मामलों में देखने से बच रहे हैं कि कहीं हमें कोई गड़बड़झाला न दिखाई दे जाए, क्योंकि हम पहले ही उसमें अपना इतना कुछ निवेश कर चुके हैं। दूसरी तरफ, अनेक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों का मत है कि पुतिन जरूरत पड़ने पर यूक्रेन पर किसी छोटे एटमी हथियार का इस्तेमाल करने से हिचकेंगे नहीं।

दूसरे शब्दों में, युद्ध अभी जारी है, चीजें अभी स्थिर नहीं हैं और खतरे कायम हैं। ऐसे में हम चीन के साथ नया बखेड़ा क्यों खड़ा करना चाहते हैं? चीन से आ रही खबरों के मुताबिक शी जिनपिंग फोन पर पहले ही बाइडेन को कह चुके थे कि जो भी आग से खेलेगा, वह जलेगा। लेकिन बाइडेन ने पेलोसी को ताइवान जाने से नहीं रोका, क्योंकि वे चीन पर मुलायम रुख अख्तियार करते हुए नहीं दिखना चाहते थे। अगर वे वैसा करते तो मध्यावधि चुनावों से पहले रिपब्लिकनों को उन्हें आड़े हाथों लेने का मौका मिल जाता।

हमारे राजनीतिक-तंत्र की बदहाली का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि डेमाक्रैटिक पार्टी का प्रेसिडेंट ही एक डेमोक्रैटिक हाउस स्पीकर को नहीं रोक पाया, और वह भी तब, जब उनकी पूरी राष्ट्रीय सुरक्षा टीम- सीआईए निदेशक से लेकर जॉइंट चीफ्स के प्रमुख तक- उनके ताइवान जाने के खिलाफ थी। मैं तो यह तक कहूंगा कि ताइवान को खुद ही पेलोसी को आने से मना कर देना चाहिए था, क्योंकि भले ही ताइवान ने बीते साठ-सत्तर सालों में बहुत तरक्की कर ली हो, है तो वह चीन के सामने एक पिद्दी-सा देश ही।

(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)