पिछले सप्ताह मुझे एक अद्भुत अनुभव हुआ, जिसने मुझे बहुत विचलित भी किया। माइक्रोसॉफ्ट के पूर्व चीफ रिसर्च ऑफिसर क्रेग मुण्डी मुझे जीपीटी-4 का डेमॉन्स्ट्रेशन दे रहे थे। यह ओपनएआई द्वारा विकसित एआई चैटबॉट चैटजीपीटी का सबसे उन्नत संस्करण है।
क्रेग मेरी पत्नी के म्यूजियम प्लैनेट वर्ड के सदस्य हैं और वे उसके बोर्ड के लिए एक ब्रीफ तैयार कर रहे थे। उनका विषय था, शब्दों, भाषा और इनोवेशन पर चैटजीपीटी के पड़ने जा रहे प्रभाव। क्रेग ने अपने डेमो की शुरुआत में ही मुझसे कह दिया था कि यह चीजों को करने के तरीकों को हमेशा के लिए बदल देने जा रहा है। शायद यह मनुष्यता का अभी तक का सबसे बड़ा आविष्कार है। यह दूसरी एआई तकनीकों से गुणात्मक रूप से भिन्न है।
चैटजीपीटी जैसे बड़े लैंग्वेज मॉड्यूल निरंतरता से अपनी क्षमताओं में वृद्धि करेंगे और हमें एक ऐसी सामान्य कृत्रिम मेधा की ओर ले जाएंगे, जो अभूतपूर्व विचारों, खोजों, अंतर्दृष्टियों, अभियानों में सक्षम होंगी। इतना कहकर उन्होंने अपना डेमो दिया और मुझे पता चल गया कि क्रेग अतिशयोक्ति नहीं कर रहे थे।
सबसे पहले उन्होंने जीपीटी-4 से कहा कि वह प्लैनेट वर्ड और उसके मिशन का सार-संक्षेप 400 शब्दों में प्रस्तुत करे। उसने चंद सेकंडों में यह कर दिया। फिर उन्होंने उससे ऐसा ही 200 शब्दों में करने को कहा। उसने चंद ही सेकंडों में यह भी कर दिया। इसके बाद उन्होंने कहा कि अब वह वैसा अरबी भाषा में करके दिखाए। उसने तुरंत कर दिया। फिर मंडारिन में। उसे इसमें दो ही सेकंड लगे।
अब उससे फरमाइश की गई कि वह इसे फिर से अंग्रेजी में प्रस्तुत करे, लेकिन इस बार शेक्सपीयर के सॉनेट्स की शैली में। उसे ऐसा करने में चंद पलों से ज्यादा नहीं लगे। सबसे अंत में क्रेग ने जीपीटी-4 से एक ऐसा काम करने को कहा, जो बहुत मुश्किल था। उसने कहा कि प्लैनेट वर्ड के मिशन पर तुकबंदी वाली एक कविता लिखे, लेकिन कविता का हर वाक्य अल्फाबेट से शुरू होना चाहिए- ए, बी, सी, डी से लेकर ज़ेड तक।
मैं हैरान रह गया, जब जीपीटी-4 ने यह भी कर दिखाया और वह भी बड़ी ही रचनात्मकता के साथ। उस रात मुझे ठीक से नींद नहीं आई। मैंने एक ऐसे एआई सिस्टम को काम करते देखा था, जिसने अनेक भाषाओं में इस दर्जे की रचनात्मकता का परिचय मात्र चंद सेकंडों में दे दिया था।
हम एक क्रांति की दहलीज पर खड़े हैं। यह इतिहास का एक ऐसा क्षण है, जब ऐसे नए उपकरण, सोचने के तरीके या ऊर्जा के स्रोत हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं, जो हमारे जीवन को रूपांतरित कर देते हैं। ये इतने इनोवेटिव होते हैं कि वे किसी एक चीज को नहीं बदलते, बल्कि हर चीज में आमूलचूल बदलाव ले आते हैं।
जीपीटी-4 के बाद हम कैसे रचते हैं, कैसे प्रतिस्पर्धा करते हैं, कैसे सहभागिता करते हैं, कैसे काम करते हैं, कैसे सीखते हैं, कैसे शासन करते हैं, यह सब बदल जाने वाला है। और हां, यह भी कि हम कैसे धोखाधड़ी करते हैं, कैसे अपराधों को अंजाम देते हैं और कैसे युद्ध लड़ते हैं।
बीते 600 सालों में समय-समय पर ऐसे ही ऐतिहासिक क्षणों से हमारा सामना होता रहा है, जैसे कि छापेखाने का आविष्कार, वैज्ञानिक क्रांति, औद्योगिक क्रांति, एटमी ऊर्जा, कम्प्यूटर, इंटरनेट... और अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस। फर्क इतना ही है कि इस बार यह ऐतिहासिक क्षण किसी एक आविष्कार के कारण नहीं आया है, जैसे कि प्रिंटिंग प्रेस या भाप के इंजिन की ईजाद के समय हुआ था।
इस बार यह एक टेक्नोलॉजी सुपर-साइकिल के जरिए उपस्थित हुआ है। एआई के माध्यम से हमारे समझने, सीखने, साझा करने, संग्रहीत करने की क्षमता में नाटकीय इजाफा होने जा रहा है। यह लूप हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है, आपकी कार से लेकर फ्रिज और आपके फोन से लेकर फाइटर जेट्स तक। और यह हर दिन ज्यादा से ज्यादा प्रोसेस को संचालित कर रहा है।
इतिहास में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि इतनी बड़ी संख्या में मनुष्यों की पहुंच ऐसे टूल्स तक हो, जो उनकी क्षमताओं को इस हद तक बढ़ाने में सक्षम हों। और यह इतनी तेजी से हो रहा है, जिसकी हममें से अधिकतर ने अपेक्षा भी नहीं की थी।
साइंस फिक्शन लेखक आर्थर सी. क्लार्क ने ठीक ही कहा था कि हर उन्नत टेक्नोलॉजी पहले-पहल किसी जादू से कम नहीं लगती।
क्या हम जीपीटी-4 के लिए तैयार हैं? लगता तो नहीं। क्योंकि अभी तो हम इसी पर बहस कर रहे हैं कि पुस्तकों पर पाबंदी लगाएं या नहीं, जबकि हम एक ऐसे टेक्नोलॉजिकल विस्फोट के मुहाने पर खड़े हैं, जो दुनिया की हर किताब के हर प्रश्न का उत्तर चंद सेकंडों में देने में सक्षम है।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)
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