‘दया निकालो स्केच’। यह संवाद सुना-सुना लगता है न? जी हां, कई लोगों ने भारत के सबसे लंबे समय तक चलने वाले टीवी शो ‘सीआईडी’ में एसीपी प्रद्युम्न को सीनियर इंस्पेक्टर दया से ऐसा कहते सुना होगा। फिर अगले फ्रेम में कोई स्केच बनाते दिखता है और अगले ही पल प्रद्युम्न टीम से कहते हैं, ‘तो ये है!’ फिर टीम की तरफ मुड़कर कहते हैं, ‘इसे उठाके लेकर आओ’। अगले दृश्य में टीम विलेन के ठिकाने पर दिखती है। वहां थोड़ी हाथापाई के बाद विलेन को पकड़कर प्रद्युम्न के सामने पेश करते हैं। कहानी खत्म।
कई लोग नहीं जानते कि जब कोई कहता है, ‘निकालो स्केच’ तो स्केचर को खाली कैनवास और चारकोल लेकर घंटों बैठना पड़ता है। वे उन लोगों से मिलते हैं, जिनकी जिंदगी लुटेरों, हत्यारों या दुष्कर्मियों ने प्रभावित की है। ज्यादातर बार, उनके पास आने वाले पीड़ितों ने हमलावर को कुछ क्षणों के लिए या दहला देने वाले वक्त में देखा होता है, जब उन्हें या किसी और को निशाना बनाया गया। कई कहते हैं कि काश पोट्रेट बनाने के लिए वे और जानकारी दे पाते, लेकिन उनके साथ हुए अपराध की प्रकृति ऐसी होती है कि उन्हें हमलावर के बारे में बहुत कम याद रहता है।
ऐसा होने पर स्केचर वह सुनते हैं, जो पीड़ित कहना चाहते हैं। फिर वे बिंदुओं को जोड़कर हमलावर का किरदार सोचते हैं। वे सवाल पूछते हैं, जैसे, ‘उसके भाव या आवाज कैसी थी?’ फिर धीरे-धीरे संदिग्ध का चेहरा बनाते हैं। अपराधी के चेहरे के फीचर बनाना आसान नहीं होता। यह संकेतों और छोटे-छोटे विवरणों को सुनकर मूल चेहरे जैसा या लगभग असली चेहरा बनाने का हुनर है। स्केचर वास्तव में पीड़ितों को न्याय पाने में मदद कर उनकी जिंदगी बदलते हैं। यह बहुत मेहनत का काम है।
मुझे यह तब याद आया, जब पता चला कि महाराष्ट्र का वास्तविक क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) पुणे में स्पेशल विंग के 18 लोगों को फॉरेंसिक आर्टिस्ट बनने का प्रशिक्षण देगा। उन्होंने हाल ही में पुणे यूनिवर्सिटी से पेशेवर सर्टिफिकेट कोर्स पूरा किया है और यह ऐसा करने वाला पहला पुलिस स्टाफ है। वास्तविकता में यह बेहद भावुक काम है। पीड़ित को उन भयानक पलों को फिर याद करना पड़ता है, तब ये आर्टिस्ट पीड़ित की जिंदगी के विलेन का चेहरा जल्द से जल्द दोबारा बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं क्योंकि संदिग्ध इलाका छोड़ सकता है।
प्रशिक्षण के पीछे विचार यह है कि हर क्राइम ब्रांच यूनिट में फॉरेंसिक आर्टिस्ट तुरंत उपलब्ध हो। इससे अपराध वाली जगह पर विशेषज्ञों के पहुंचने का इंतजार घटेगा। स्टाफ को उस जगह जाने, आपराधिक विश्लेषण करने, सड़ चुकी या जली हुई लाशों के स्केच बनाने, गवाहों से पूछताछ करने, एनाटॉमी, लाइट सेक्शन फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और विजुअलाइजेशन का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
पुलिस को अचानक फॉरेंसिक आर्टिस्ट के इतने बड़े बैच की जरूरत क्यों लगी? यहां ज्ञान और बुद्धिमानी में अंतर मुख्य है। ज्ञान कौशलों और जानकारी का संकलन है, जिसे व्यक्ति अनुभव से पाता है। बुद्धिमत्ता, ज्ञान का इस्तेमाल करने की क्षमता है। वे सिर्फ तस्वीरें बनाने या सुधारने का काम नहीं करते, बल्कि कुछ मामलों में यह निर्धारित करने में भी मदद करते हैं कि अपराधी अब कैसा दिखता है या पहले कैसा दिखता था। साथ ही वे क्राइम सीन दोबारा बनाकर दिखा सकते हैं कि घटनास्थल पर क्या हुआ होगा।
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