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पिछले तीन-चार सौ साल से दुनिया में एक बड़ी लड़ाई चल रही है। उसका नाम है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। ब्रिटेन, यूरोप, अमेरिका और भारत-जैसे कई देशों में तो यह नागरिकों को उपलब्ध हो गई है, पर चीन, रूस और कुछ अफ्रीकी व अरब देशों में आज भी लड़ाई जारी है।
लेकिन आजकल एक नई लड़ाई सारी दुनिया में छिड़ गई है। वह है, अपनी बात बताने की नहीं, छिपाने की स्वतंत्रता। छिपाने का अर्थ क्या है? यही कि आपने किसी से फोन या ईमेल पर कोई बात की तो उसे कोई तीसरा व्यक्ति न जान पाए। वह तभी जाने जब आप उसे अनुमति दें।
करोड़ों लोग हर रोज़ अरबों-खरबों संदेशों का लेन-देन करते रहते हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर को यह पता नहीं है कि उनके एक-एक शब्द पर कुछ खास लोगों की नजर रहती है। कौन हैं, ये खास लोग? ये हैं, वॉट्सएप और फेसबुक के अधिकारी! उन्होंने ऐसी तरकीबें निकाल रखी हैं कि आपकी कितनी भी गोपनीय बात हो, वे उसे सुन और पढ़ सकते हैं।
ऐसा करने के पीछे उनका स्वार्थ है। वे आपको आर्थिक नुकसान पहुंचा सकते हैं, आपके फैसले बदलवा सकते हैं, पारस्परिक संबंध बिगाड़ सकते हैं। यही शक्ति वे सरकार के मंत्रियों, सांसदों और अधिकारियों के विरुद्ध भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसीलिए यह मांग उठ रही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तरह निजता यानी गोपनीयता की स्वतंत्रता की भी कानूनी गारंटी हो।
हमारे संविधान में निजता की कोई गारंटी नहीं है। 2017 में हमारे सर्वोच्च न्यायालय में इस मुद्दे पर जमकर बहस हुई थी। अब 2021 में भी सर्वोच्च न्यायालय में यही मुद्दा जोरों से उठा है। लेकिन दोनों में बड़ा फर्क है। जुलाई 2017 में कुछ याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि निजता को भी अभिव्यक्ति की तरह संविधान में मूल अधिकार की मान्यता दी जाए लेकिन तब सरकारी वकील ने तर्क दिया कि यदि निजता को मूल अधिकार बना दिया गया तो उसकी आड़ में वेश्यावृत्ति, तस्करी, विदेशी जासूसी, ठगी, आपराधिक, राष्ट्रद्रोही और आतंकी गतिविधियां बेखटके चलाई जा सकती हैं।
उसने सर्वोच्च न्यायालय के 1954 और 1956 के दो फैसलों का जिक्र भी किया था, जिनमें निजता के अधिकार को मान्य नहीं किया गया था। लेकिन अब सरकारी वकील निजता के अधिकार के लिए सर्वोच्च न्यायालय में पूरा जोर लगा रहे हैं। क्यों? क्योंकि वॉट्सएप और फेसबुक जैसी कंपनियों के बारे में शिकायतें आ रही हैं कि वे निजी संदेशों की जासूसी करके बेशुमार फायदे उठा रही हैं। वॉट्सएप के जरिए भेजे जानेवाले संदेशों से इतना फायदा उठाया जाता है कि वॉट्सएप को फेसबुक ने 19 अरब डॉलर जैसी मोटी रकम देकर खरीदा था।
हर वॉट्सएप संदेश के ऊपर यह लिखा होता है कि आपके संदेश कोई न पढ़ सकता है, न सुन सकता है लेकिन इस साल उसने घोषणा कर दी थी कि 8 फरवरी 2021 से उसके हर संदेश या बातचीत को फेसबुक देख सकेगी। यह खबर आते ही इतना हंगामा मचा की वॉट्सएप ने तारीख को आगे खिसकाकर 15 मई कर दिया। लोग इतने डर गए कि लाखों लोगों ने वॉट्सएप की जगह सिग्नल और टेलीग्राम जैसे नए माध्यम पकड़ लिए।
देश में जैसा माहौल है, ज्यादातर मंत्रीगण, नेता, पत्रकार और बड़े व्यापारी लोग वॉट्सएप को ही सुरक्षित समझते हैं। इसीलिए भारत सरकार ने 2018 में ‘व्यक्तिगत संवाद रक्षा कानून’ के निर्माण पर बहस चलाई। उसमें दर्जनों संशोधन आए और संसद के इस सत्र में वह शायद कानून भी बन जाए। इस कानून में व्यक्तिगत निजता की तो पूरी गारंटी होगी, लेकिन राष्ट्रविरोधी व आपराधिक गतिविधियां पकड़ने की छूट होगी।
आजकल सर्वोच्च न्यायालय में सरकारी वकील फेसबुक के वकीलों से जमकर बहस कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि यूरोप में आप जो नीति दो साल से चला रहे हैं, वह भारत में क्यों नहीं चलाते? यूरोपीय संघ ने निजता-भंग पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं और उसका उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर भारी जुर्माना ठोक दिया है। व्यक्ति-विशेष की अनुमति के बिना उसके संदेश को किसी भी हालत में कोई नहीं पढ़ सकता। 16 साल की उम्र के बाद ही बच्चे वॉट्सएप इस्तेमाल कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी निजता के अधिकार की रक्षा में गहरी रुचि दिखाई है। चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने फेसबुक के लोगों से कहा है कि ‘आप होंगे, दो-तीन ट्रिलियन की कंपनी, लेकिन लोगों की निजता उससे ज्यादा कीमती है। हर हाल में उसकी रक्षा हमारा फर्ज है।’ न्यायपीठ ने वॉट्सएप से कहा है कि वह चार हफ्तों में अपनी प्रतिक्रिया दे। फेसबुक के वकीलों ने कहा है कि यदि भारतीय संसद यूरोप जैसा कानून बना देगी तो हम उसका भी पालन करेंगे। हमारी संसद को यही सावधानी रखनी होगी कि निजता का यह कानून बनाते वक्त वह कृषि-कानूनों की तरह जल्दबाजी न करे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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