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गुजरात में राजस्थान के नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर:भाजपा का होमवर्क पूरा, कांग्रेस उलझी राजनीतिक अस्थिरता में

जयपुर7 महीने पहले
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देश के दो प्रमुख राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में अगले 35-40 दिनों में चुनाव होने हैं। वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले इन दोनों राज्यों के चुनावों को सेमीफाइनल का ही एक मैच माना जा रहा है। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है।

दोनों राज्यों में भाजपा व कांग्रेस के राजस्थानी नेताओं की इन चुनावों में खास भूमिका है। भाजपा भीड़ को खींचने की क्षमता रखने वाले राजस्थानी नेताओं का उपयोग कर रही है, वहीं अभी तक कांग्रेस हिमाचल प्रदेश पर ही ध्यान केन्द्रित किए हुए है। गुजरात जैसे बड़े और राजनीतिक-आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य पर फिलहाल अभी तक उसका ज्यादा फोकस नहीं हुआ है। लगातार ढाई दशक से सत्ता में होने के बावजूद भाजपा जहां गुजरात में अपना होमवर्क और फील्डवर्क पूरा कर चुकी है, वहीं कांग्रेस तुलनात्मक रूप से होमवर्क और फील्ड वर्क में अभी बहुत पीछे दिखाई दे रही है।

राजस्थानवासियों, राजनेताओं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच राजस्थान के बाहर उत्तर प्रदेश और गुजरात के चुनावों को लेकर हमेशा खास उत्सुकता और रुचि बनी रहती है। राजस्थान में लाखों परिवार ऐसे हैं, जिनका कोई ना कोई सदस्य गुजरात में जरूर रहता है। एक से दो लाख राजस्थानी लोग मेडिकल, पर्यटन, शिक्षा, व्यापार आदि के लिए रोजाना गुजरात आते-जाते हैं।

ऐसे में प्रदेशवासियों की गुजरात चुनाव में खासी रुचि रहना स्वाभाविक है। इसे देखते हुए भाजपा ने राजस्थान के लगभग सभी प्रमुख नेताओं को गुजरात चुनाव से जोड़ लिया है, लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं कर पा रही है, क्योंकि एक तो पार्टी में पिछले एक महीने से राजस्थान में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। अब कांग्रेस पाटी ने फिलहाल अपना ध्यान हिमाचल प्रदेश पर शिफ्ट किया हुआ है। ऐसे में गुजरात चुनावों में कांग्रेस के राजस्थानी नेता भी ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं।

गुजरात में राजस्थान के पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा को चुनाव का प्रभारी बनाया हुआ है।
गुजरात में राजस्थान के पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा को चुनाव का प्रभारी बनाया हुआ है।

गुजरात में राजस्थान के कांग्रेसी नेता

गुजरात में कांग्रेस ने राजस्थान के वरिष्ठ नेता व पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा को चुनाव का प्रभारी बनाया हुआ है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुजरात में वरिष्ठ पर्यवेक्षक की भूमिका में हैं। उनके अतिरिक्त गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर 17 मंत्रियों और अन्य वरिष्ठ नेताओं को प्रभारी बनाया हुआ है। इस बीच दो बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुजरात का दौरा किया है, लेकिन फिलहाल उनकी कोई बड़ी सभा या रैली वहां नहीं हुई है।

कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी की भी कोई रैली या सभा गुजरात में नहीं हुई है। राजस्थान की बात करें, तो सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की तो कोई ड्यूटी तक वहां नहीं लगाई गई है। उनका अभी वहां जाना भी तय नहीं हुआ है। राजस्थान में विगत एक माह से चल रहे राजनीतिक अस्थिरता के चलते जिन 17 मंत्रियों की ड्यूटी गुजरात में लगाई थी, उनमें से भी अधिकांश ने एक-दो बार ही कार्यकर्ताओं की मीटिंग की है, जबकि अब तक उन्हें वहां 5-6 बार मीटिंग करनी थी।

राजस्थान से पूर्व केन्द्रीय मंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री गिरिजा व्यास, पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी सहित वर्तमान मंत्रियों में हेमाराम चौधरी, बृजेन्द्र ओला, विश्ववेन्द्र सिंह जैसे दिग्गजों की भी ड्यूटी नहीं लगाई गई है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिहं डोटासरा ने भी गुजरात चुनावों में अभी तक कोई रैली या सभा नहीं की है।

कांग्रेस आलाकमान ने भी गुजरात में पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी नहीं की है, जबकि हिमाचल प्रदेश के चुनावों के लिए यह सूची जारी कर दी गई है। शीर्ष नेताओं में से एक प्रियंका गांधी ने हाल ही हिमाचल प्रदेश में सभा भी की और उसके बाद स्टार प्रचारकों की सूची जारी हुई। इस सूची में राजस्थान से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के नाम शामिल हैं। पार्टी के गुजरात प्रभारी डॉ. रघु शर्मा ने हाल ही में गुजरात चुनावों के बारे में मुख्यमंत्री गहलोत और आलाकमान को पूरी जानकारी दी है।

भाजपा ने राजस्थान मूल के नेता भूपेन्द्र यादव को गुजरात चुनावों का प्रभारी बनाया है।
भाजपा ने राजस्थान मूल के नेता भूपेन्द्र यादव को गुजरात चुनावों का प्रभारी बनाया है।

गुजरात में राजस्थान के भाजपा नेता

भाजपा ने राजस्थान मूल के नेता भूपेन्द्र यादव 2017 के चुनावों में भी प्रभारी थे। यादव गुजरात में निरंतर सक्रिए हैं। वे हाल के एक-दो महीनों से नही नहीं बल्कि पिछले पांच वर्षों से लगातार गुजरात में पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों में शामिल रहते हैं। यादव का राजनीतिक रिकॉर्ड जबरदस्त है।

उन्होंने गुजरात के अलावा बिहार के 2020 चुनावों में भी पार्टी को सफलता दिलवाई थी और वे जब 2013 में राजस्थान में भाजपा की सुराज संकल्प यात्रा के समन्वयक थे, तब पार्टी को राजस्थान में 200 में से 163 सीटों का ऐतिहासिक बहुमत मिला था। सप्ताह भर पहले ही उन्होंने बहुत से स्थानों पर कार्यकर्ताओं की मीटिंग ली थी।

दीपावली से एक सप्ताह पहले गुजरात में दीपावली स्नेह मिलन का कार्यक्रम राजस्थान भाजपा की ओर से रखा गया है। इस कार्यक्रम में राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया ने प्रवासी राजस्थानियों के साथ अहमदाबाद और सूरत में सभाएं की हैं। पूनिया ने अहमदाबाद से सूरत के बीच वंदे मातरम ट्रेन से यात्रा भी की। यह ट्रेन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फ्लैगशिप योजनाओं का हिस्सा है। पूनिया ने इस ट्रेन यात्रा का एक वीडियो भी अपने सोशल मीडिया पर शेयर कर भाजपा का प्रचार भी किया।

पूनिया के अतिरिक्त केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत सहित विभिन्न सांसदों के दौरे होते रहे हैं। अब सप्ताह भर बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित राजेन्द्र राठौड़, पुष्पेन्द्र सिंह राणावत, अनिता भदेल, सी. पी. जोशी, सुभाष बहेड़िया, सुमेधानंद सरस्वती, निहाल चंद, राहुल कस्वां, मनोज राजौरिया, रामचरण बोहरा, घनश्याम तिवाड़ी, सुखबीर सिंह जौनपुरिया, ज्ञानचंद पारख, ओटाराम देवासी सहित बहुत से वरिष्ठ नेताओं के दौरे भी होंगे।

इनके अतिरिक्त भाजपा के शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह मूलत: गुजरात से ही हैं और गुजरात में उनकी जबरदस्त लोकप्रियता है। इसके बावजूद वे गुजरात चुनाव को पूरी गंभीरता से ले रहे हैं। विगत एक माह में मोदी और शाह ने गुजरात में चार बार बड़ी सभाओं को सम्बोधित किया है।

गुजरात और राजस्थान में है घनिष्ठ संबंध

राजे-रजवाड़ों के समय से ही राजस्थान और गुजरात के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। बहुत सी रियासतों के बीच कई हजार वर्षों से वैवाहिक संबंध हैं। विगत 100-200 वर्षों से राजस्थान के मारवाड़ और शेखावाटी इलाके से हजारों परिवार उद्योग-व्यापार के सिलसिले में वहां जाकर बस गए हैं। आज उनकी चौथी, पांचवी पीढ़ी रह रही हैं। व्यापार में राजस्थान के जैन, अग्रवाल, माहेश्वरी समाज का गुजरात में वर्चस्व है। गुजरात की आबादी करीब साढ़े छह करोड़ है। जिसमें करीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी पारिवारिक जड़ें राजस्थान से हैं। इनमें भी अधिकांश लोग तो ऐसे हैं, जो विगत 40-50 वर्षों में ही राजस्थान से वहां जाकर बसे हैं। अहमदाबाद, मेहसाणा, बनासकांठा, वडोदरा, आणंद, कच्छ, सुरेन्द्रनगर, राजकोट और सूरत में तो राजस्थान मूल के लोगों की आबादी करीब 25 से 50 प्रतिशत तक है।

जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर संभाग और शेखावाटी क्षेत्र से हर वैश्य समुदाय और किसान समुदायों के लाखों परिवार गुजरात में रहते हैं। ऐसे में यह राजस्थानी समुदाय को लुभाने के लिए हर चुनाव में कांग्रेस और भाजपा राजस्थानी राजनेताओं को गुजरात में प्रचार, दौरे, सभा आदि के लिए भेजती हैं।

गहलोत की प्रतिष्ठा दांव पर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुजरात में कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक हैं। गुजरात चुनावों में उन पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उन्हीं की सिफारिश पर पार्टी ने उनके मातहत मंत्री रहे रघु शर्मा को वहां प्रभारी बनाया था। गहलोत पांच वर्ष पहले 2017 गुजरात चुनावों के प्रभारी थे। तब वे मुख्यमंत्री नहीं थे। गहलोत ने वहां तब बहुत से गांव-शहरों में उन्होंने दौरे किए थे।

गहलोत के प्रयासों से उन चुनावों में भाजपा को 182 में से 99 सीटों पर कांग्रेस रोक पाने में कामयाब हुई। कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं जो पिछले दो दशक में कांग्रेस का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा। गहलोत ने तब एक बयान जारी कर इस प्रदर्शन को कांग्रेस की नैतिक विजय बताया था। उनका कहना था कि केन्द्र और गुजरात सहित पड़ोसी राज्यों (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व राजस्थान) में भाजपा की सरकारें होते हुए भी भाजपा को 182 में से 100 सीटें भी ना मिल सकीं।

अब गहलोत गुजरात के पड़ोसी राज्य में मुख्यमंत्री के पद पर हैं और कांग्रेस के शीर्ष पांच बड़े नेताओं में से एक हैं। वे अक्सर अपनी सरकार के कामकाज को गुजरात सरकार से बेहतर बताते रहे हैं। हाल ही उन्होंने राजस्थान की सड़कों और चिकित्सा व्यवस्था को गुजरात से बेहतर बताया था।

गुजरात चुनावों को लेकर विभिन्न एजेंसियों के जो सर्वे हाल ही जारी हुए हैं, उनमें भाजपा को एक बार फिर से सत्तासीन होते दिखाया गया है। ऐसे में गुजरात चुनावों में गहलोत और उनकी रणनीति की प्रतिष्ठा दांव पर है। वहां के प्रदर्शन का गहलोत के राजनीतिक भविष्य पर भी गहरा असर होना संभव है।

जिन्हें 5-6 मीटिंग लेनी थी वे अब तक एक दो ही ले पाए

राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में लगातार अस्थिर राजनीतिक माहौल है। विधायकों ने इस्तीफे दिए हुए हैं। ऐसे में जिन्हें गुजरात जाकर कार्यकर्ताओं की अब तक 5-6 मीटिंग लेनी थी, वे अब तक केवल एक दो मीटिंग ही ले सके हैं। राजस्थान मूल के लोग गुजरात की कुल जनसंख्या में 15 प्रतिशत हैं । लगभग एक करोड़ लोग राजस्थानी मूल के हैं।

राजस्थान सरकार के मंत्री बी डी कल्ला, रामलाल जाट, शकुन्तला रावत, अशोक चांदना, सुखराम विश्नोई, परसादी लाल मीना, सालेह मोहम्मद, महेंद्रजीत मालवीय सहित 17 प्रमुख नेताओं को गुजरात में जिम्मेदारी दी गई है।

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राजस्थान सरकार में चल रहे सियासी संकट के बीच बीजेपी ने कांग्रेस को घेरने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस सरकार के 4 साल पूरे होने पर बीजेपी जन आक्रोश रैली करेगी। बीजेपी का यह कार्यक्रम पूरे प्रदेश में लगभग एक महीना चलेगा। सरकार के 4 साल पर घेरने की प्लानिंग बीजेपी के प्रदेश पदाधिकारियों के स्तर पर चल रही थी। इसका प्लान तैयार किया गया था। जिसे 21 अक्टूबर को दिल्ली में हुई कोर कमेटी की बैठक में मंजूरी मिल गई है। (पूरी खबर पढ़ें)

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