राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए शुरू की गई ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) अब कई स्टेट के लिए मुद्दा बन गई है। राजस्थान की तर्ज पर पुरानी पेंशन की मांग पर अब देशभर के सरकारी कर्मचारी 8 दिसंबर को दिल्ली पहुंचकर जंतर-मंतर के सामने धरना देंगे। सरकारी कर्मचारियों की मांग है कि पूरे देश में एक साथ ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की जाए।
आपको याद दिला दें कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी सरकार बनने पर ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का वादा कर रखा है। सबसे पहले राजस्थान में मार्च-2022 में पेश किए गए बजट में सीएम अशोक गहलोत इसे लागू कर चुके हैं। राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ और पंजाब में भी इसे लागू कर दिया गया है। दोनों राज्यों में क्रमश: कांग्रेस और आप की सरकार है। अब झारखंड में भी ओपीएस लागू करने की तैयारी की जा रही है। अब बाकी राज्यों के सरकारी कर्मचारियों की मांग है कि पूरे देश में एक साथ ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की जाए।
धरने में राजस्थान के सरकारी कर्मचारी भी होंगे शामिल
दिल्ली में 8 दिसंबर को होने वाले इस धरने में राजस्थान के सरकारी कर्मचारी संगठन भी शामिल होंगे। राजस्थान में हालांकि ओल्ड पेंशन स्कीम लागू तो हो चुकी है, लेकिन इसमें अभी भी पेंशन फंड रेग्युलेटरी एंड डवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) के तहत आने वाला पैसा रुका हुआ है। यह अथॉरिटी केन्द्र सरकार के अंडर में काम करती है। यह एक एक्ट भी है। इसके तहत पैसा केन्द्र से राज्य सरकार के पास आना है। फिलहाल केन्द्र ने उसकी मंजूरी नहीं दी है। बीते दिनों केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस पर असहमति जता चुकी हैं। उन्होंने ओपीएस लागू करने वाले राज्यों को देने से ही गत दिनों मना कर दिया है।
अगर मंजूरी मिलती है तो इससे राजस्थान को लगभग 41 हजार करोड़ रुपए मिल सकते हैं। यह पैसा नहीं मिलने की आशंका में कर्मचारी वर्ग चिंतित है। राजस्थान के कर्मचारी दिल्ली में धरने के दौरान अपना अनुभव देश के शेष कर्मचारी संगठनों के साथ साझा करेंगे। राजस्थान के प्रतिनिधि के रूप में कर्मचारी नेता तेज सिंह राठौड़ व उनके साथ दिल्ली जाएंगे। राठौड़ ने भास्कर को बताया कि हमारी जो भी आशंका है वो तो जाहिर करेंगे ही साथ ही हम पूरे देश के कर्मचारियों की इस मांग का भी समर्थन करते हैं कि कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम एक साथ पूरे देश में लागू की जाए। इसे राजनीतिक पार्टियां अपनी लड़ाई का मुद्दा ना बनाए, इसकी कोशिश भी कर्मचारी संगठन कर रहे हैं।
किसानों के बाद सबसे प्रभावशाली वोट बैंक है सरकारी कर्मचारी
राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे देश में सरकारी कर्मचारियों को किसानों के बाद सबसे प्रभावशाली व विशाल आकार वाले वोट बैंक के रूप में देखा जाता है। यह वर्ग भी सरकारी योजनाओं से खुश और नाराज होकर अपना वोट तय करता है, इसलिए कोई भी सरकार सामान्यत: कर्मचारियों को नाराज करने का जोखिम नहीं लेती है। राजस्थान में करीब 7 लाख 50 हजार कर्मचारी हैं। देश भर में सरकारी कर्मचारियों की संख्या लगभग 2 करोड़ है। एक कर्मचारी के साथ 4 से 5 सदस्यों का परिवार भी होता है। ऐसे में उनकी ताकत 8 से 10 करोड़ मतदाताओं के रूप में होती है। ओल्ड पेंशन स्कीम पर अब राजनीतिक दलों के बीच बड़ी चुनावी जंग होना तय माना जा रहा है, क्योंकि हर दल 8-10 करोड़ मतदाताओं को अपने पक्ष में करना ही चाहता है।
ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने में कांग्रेस सबसे आगे
राजस्थान की सीएम अशोक गहलोत द्वारा ओपीएस लागू करने के बाद कांग्रेस शासित दूसरे राज्य छत्तीसगढ़ ने भी इसे लागू किया। कांग्रेस ही गुजरात और हिमाचल में भी सरकार बनने पर इसे लागू करने का वादा कर रही है। अन्य पार्टियां भी कांग्रेस से ही प्रेरित हुई हैं। राहुल गांधी भी अपनी यात्रा के दौरान विभिन्न स्थानों पर ओपीएस का वादा कर चुके हैं, लेकिन पिछले 18 वर्षों में कांग्रेस खुद ओपीएस की विरोधी रही है।
जब एनडीए सरकार ने 2003-04 में ओल्ड पेंशन स्कीम को पूरे देश में बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू की थी, तब भाजपा नीत एनडीए सरकार छह महीने बाद ही देश की सत्ता खो चुकी थी, तब कांग्रेस नीत यूपीए सरकार बनी। जिसके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद एक आर्थिक विशेषज्ञ रहे। उन्होंने अपने 10 साल के शासन में एक बार भी ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने की बात नहीं की। इस दौरान राजस्थान में 2008-13 के बीच कांग्रेस की सरकार रही, तब भी ओपीएस लागू करना तो दूर कभी उसका वादा भी नहीं किया गया।
इस बीच देश के 6 राज्यों में कांग्रेस सत्ता में आई, लेकिन कहीं भी ओल्ड पेंशन स्कीम का समर्थन नहीं किया। यूपीए सरकार के वक्त योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने तो हाल ही कहा है कि अगर कोई भी राज्य सरकार ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करती है, तो वो देश-प्रदेश के वित्तीय साधनों का दुरुपयोग है और यह एक प्रकार से वोटों को लुभाने के लिए सबसे बड़ी रेवड़ी बांटना है।
क्या है ओल्ड पेंशन स्कीम और नई पेंशन स्कीम
ओल्ड पेंशन स्कीम पूरे देश में 31 मार्च 2004 तक लागू थी। एक अप्रेल 2004 से पूरे देश में केन्द्रीय व राज्य कर्मचारियों के लिए नई पेंशन स्कीम लागू की गई। इसके लिए तत्कालीन एनडीए (भाजपा नीत) सरकार ने संसद में एक बिल पेश कर देश में ओल्ड पेंशन स्कीम को खत्म कर दिया। इस बिल को मई-2004 में केन्द्र में सत्ता में आई यूपीए सरकार (कांग्रेस नीत) ने भी लगातार 10 वर्ष जारी रखा। बाद में 2014 से अब तक केन्द्र में स्थापित भाजपा सरकार ने भी इसे जारी रखा हुआ है।
ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद भी प्रत्येक महीने पेंशन राशि मिलती है, जबकि नई पेंशन स्कीम में सेवानिवृत्ति के बाद प्रत्येक महीने मिलने वाली पेंशन राशि बंद हो जाती है। इसके अलावा ओल्ड पेंशन स्कीम में पेंशन देने का खर्च सरकार द्वारा उठाया जाता है, वहीं नई पेंशन स्कीम में जिन कर्मचारियों को पेंशन चाहिए उन्हें इसका वित्तीय भार भी खुद ही उठाना पड़ता है।
सीएम गहलोत का दावा पूरे देश में लागू करनी ही पड़ेगी ओल्ड पेंशन स्कीम
इधर देश भर के विशाल कर्मचारी वर्ग में ओल्ड पेंशन स्कीम के प्रति पनपते उत्साह को देखते हुए हाल ही राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने यह दावा किया है कि आज नहीं तो कल देश की केन्द्र सरकार व विभिन्न राज्यों की सरकारों को भी ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करनी ही पड़ेगी। कांग्रेस इसकी शुरुआत कर चुकी है, क्योंकि हम लोग कर्मचारियों को सुरक्षित भविष्य का उनका हक उन्हें देना चाहते हैं। अन्य राजनीतिक पार्टियों को भी कांग्रेस को फॉलो करना ही पडे़गा।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.