राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव में BJP पीएम नरेंद्र मोदी के साथ ही स्थानीय चेहरे के साथ उतर सकती है। दूसरे राज्यों में हुए चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए यह फैसला किया जा सकता है। ऐसे में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चुनावों में कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए उसका मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा?
भाजपा के नेता इस सवाल को यही कह कर टालते आए हैं कि चुनाव केन्द्र की नीतियों-योजनाओं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। हालांकि पिछले 5-7 साल में देश भर में हुए विधानसभा चुनावों को देखा जाए तो भाजपा ने हर चुनाव में चेहरा घोषित किया था। यहां तक कि जरूरत पड़ने पर पार्टी ने एक-दो राज्यों में तो गठबंधन सहयोगी दल के नेता के चेहरे पर चुनाव लड़ा था। जहां चेहरा घोषित नहीं किया, वहां भाजपा को चुनावों में खासी मुश्किलें आईं और परिणाम विपरीत आए हैं।
सूत्रों का कहना है कि राजस्थान में भी पार्टी कोई न कोई चेहरा जरूर जनता के सामने पेश करेगी कि सरकार बनने पर इसे मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। हाल ही में जिन दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं, वहां पर भी भाजपा ने मौजूदा मुख्यमंत्रियों भूपेन्द्र पटेल और जयराम ठाकुर को अपना चेहरा बना रखा है।
यह अलग बात है कि मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह भी दोनों राज्यों में जमकर प्रचार कर रहे हैं और रणनीति भी बना रहे हैं। नड्डा ने शनिवार को कहा कि भाजपा में प्रधानमंत्री मोदी और नीतियां पार्टी की ताकत है। यही कारण है कि मोदी, शाह और वह खुद हैदराबाद के नगर निगम चुनावों में भी प्रचार करते हैं और विधानसभा-लोकसभा के चुनावों में भी।
ऐसे में भास्कर ने जब विभिन्न राज्यों में हुए चुनावों का आकलन किया तो पाया कि भाजपा तो अधिकांश चुनाव स्थानीय चेहरे को आगे रखकर ही लड़ती है, अन्यथा परिणाम उसकी इच्छा के विपरीत ही आए हैं। राजस्थान भाजपा की इस नीति से अछूता नहीं रह सकता। यहां भी जल्द ही भाजपा मुख्यमंत्री पद के लिए किसी न किसी को तो अपना चेहरा घोषित कर सकती है।
जहां चेहरा घोषित नहीं किया वहां भाजपा हारी दिल्ली- राजधानी दिल्ली में 2013 में भाजपा ने डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था। दिल्ली की कुल 68 में से भाजपा को 31 सीटें मिली थीं जो आप पार्टी की 28 और अन्य की 9 सीटों से ज्यादा थीं। यह दिल्ली में भाजपा का पिछले 23 सालों में सबसे बेहतर रिकॉर्ड था। हालांकि विधानसभा भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी सरकार नहीं बना पाई थी। उसके बाद पार्टी ने 2015 में हुए चुनावों में कोई चेहरा घोषित नहीं किया। चुनावों के दौरान अंतिम समय में जब किरण बेदी को चेहरा घोषित किया गया तो पार्टी को मात्र 7 सीटें ही मिलीं। उसके बाद 2020 में पार्टी ने कोई चेहरा घोषित नहीं किया और दिल्ली में मात्र 3 सीटें ही जीत सकीं।
बंगाल- पश्चिम बंगाल का चुनाव भाजपा के लिए बहुत बड़ी चुनौती था। 25 साल के कांग्रेस, 35 साल के कम्युनिस्ट राज और 10 साल के ममता बनर्जी के शासन को तोड़ने के लिए भाजपा ने अपना सब कुछ 2021 के चुनावों में झोंक दिया। भाजपा का वहां मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा घोषित नहीं था। बीजेपी को 282 में से मात्र 72 सीटें ही मिलीं।
पंजाब- पंजाब में भाजपा पिछले 3 दशक से शिरोमणी अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। 2017 और 2012 के चुनाव भाजपा ने अकाली दल के साथ उनके सीएम चेहरे प्रकाश सिंह बादल के नाम पर ही चुनाव लड़े और जीते, लेकिन 2022 में अकाली दल की ओर से गठबंधन तोड़ने के बाद भाजपा ने अपने दम पर चुनाव लड़ा। कोई चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में आगे नहीं था। भाजपा पंजाब में 117 में से मात्र 1 सीट ही जीत पाई।
चेहरा घोषित करके ही जीती भाजपा
उत्तराखंड- उत्तराखंड में 2022 में विधानसभा चुनाव हुए हैं। इससे पहले भाजपा ने यहां 3 बार मुख्यमंत्री को बदला। चुनाव से महज 3 महीने पहले पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। उनको आगे रख कर ही चुनाव लड़ा गया, लेकिन धामी खुद चुनाव हार गए थे। हालांकि चुनाव के बाद बीजेपी ने धामी को ही मुख्यमंत्री बनाया।
उत्तर प्रदेश- 2022 में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे और राज्य सरकार की परफॉर्मेंस के आधार पर ही लड़ा। राज्य में बीजेपी ने न केवल सरकार रिपीट की बल्कि उसने एक ही राज्य में सपा, बसपा, रालोद, कांग्रेस जैसी 4 राष्ट्रीय पार्टियों को हराया।
बिहार- बिहार में 2020 में भाजपा ने अपने गठबंधन सहयोगी जदयू के नेता नीतीश कुमार को ही सीएम का चेहरा घोषित किया हुआ था। प्रदेश की कुल 243 में से 125 सीटों पर भाजपा और जेडीयू गठबंधन ने जीत हासिल की। इसमें भाजपा ने अकेले 74 सीटें हासिल की, लेकिन उसने सीएम नीतीश कुमार को ही बनाया, जबकि नीतीश की पार्टी ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद महज 51 सीटें ही जीती थीं।
असम- भाजपा ने 2021 में चुनावों में जाने से पहले ही हेमंत बिस्वा सरमा को अपने चुनाव प्रचार में आगे कर दिया था, जबकि उस समय मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल थे। बाद हेमंत को असम में सरकार रिपीट होने पर सीएम बनाया गया। हेमंत अब भाजपा के लिए राजनीतिक हलकों में केवल असम तक ही सीमित नहीं हैं। उन्हें भाजपा का फेस ऑफ नॉर्थ ईस्ट (पूर्वोत्तर भारत में भाजपा का चेहरा) कहा जाता है, क्योंकि मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम आदि में भी भाजपा की सरकारें बनाने में हेमंत की खास भूमिका रही है।
महाराष्ट्र- यहां 2019 में चुनाव हुए। वहां पहले से ही भाजपा की सरकार थी। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ही भाजपा के चेहरे थे और पार्टी ने उन्हें ही आगे किया हुआ था। महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी। हालांकि इसके बाद गठबंधन की सहयोगी पार्टी शिवसेना के साथ नहीं देने पर फडणवीस दोबारा सीएम नहीं पाए। बाद में कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से उद्धव ठाकरे सीएम बने, लेकिन करीब ढाई साल सीएम रहने के बाद उनकी पार्टी टूटी और एकनाथ शिंदे सीएम बने। भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस को उप-मुख्यमंत्री बनाया।
हरियाणा- इस राज्य में भी महाराष्ट्र की ही तरह 2019 में चुनाव हुए। भाजपा की सरकार थी और मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री थे। उन्हीं के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और पार्टी की सरकार रिपीट हुई। पार्टी ने खट्टर को ही मुख्यमंत्री बनाया।
जहां सीएम चेहरा घोषित करने के बावजूद चुनाव हारी भाजपा
साल 2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भाजपा ने वसुंधरा राजे, शिवराज चौहान और डॉ. रमन सिंह के चेहरों पर ही चुनाव लड़ा था, लेकिन तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनी और भाजपा की हार हुई। मध्यप्रदेश में एक साल बाद ही कांग्रेस में टूट हुई और वहां भाजपा की सरकार बनी। तब पार्टी ने पूर्व में घोषित सीएम शिवराज चौहान को ही प्रदेश का सीएम बनाया।
ऐसे ही 2019 में झारखंड में भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को ही आगे रखकर चुनाव लड़ा था। कुल 81 में से भाजपा को 25 सीटें मिली। झामुमो ने 31 सीटें जीतकर कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली।
गुजरात में 2021 में बदला सीएम
गुजरात में भाजपा की सरकार पिछले 27 सालों से है। इनमें से 2002, 2007 और 2012 के चुनाव भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही लड़े और उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया गया। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदी बेन पटेल को सीएम बनाया गया। साल 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दिया, तो विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया। विजय रूपाणी के नेतृत्व में 2017 के चुनाव लड़े गए। भाजपा ने जीतने के बाद उन्हें ही सीएम बनाया, लेकिन 2021 में उनके चेहरे को असरदार नहीं मानते हुए भाजपा ने गुजरात के सबसे बड़े वोट बैंक पटेल समुदाय से भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। अब पार्टी उनको आगे रखकर चुनाव लड़ रही है।
हिमाचल में भी मुख्यमंत्री ठाकुर ही हैं चेहरा
हिमाचल प्रदेश में शनिवार को मतदान हो चुका है। प्रदेश में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ही भाजपा को लीड कर रहे हैं। शनिवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हिमाचल में मतदान किया। नड्डा ने वहां पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि जयराम की सरकार रिपीट होने वाली है। यह कहना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मुख्यमंत्री ठाकुर ही भाजपा का चेहरा हैं।
राजस्थान में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर हो रही लगातार बातें
हाल ही में भाजपा के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने आमेर में एक सभा में प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को राजस्थान का सबसे बड़ा नेता बताया। उसके बाद से एक बार फिर राजनीतिक हलकों में भाजपा के सीएम चेहरे को लेकर चर्चाएं शुरू हो गईं। 4 दिन पहले जयपुर में एक होटल में भाजपा के वरिष्ठ विधायक व पूर्व मंत्री वासुदेव देवनानी ने बताया कि पार्टी में राजस्थान में कई चेहरे हैं, जो सीएम बन सकते हैं। चेहरा कौन होगा यह समय आने पर ही तय होगा।
राजस्थान भाजपा में ये चेहरे चर्चा में
ओम बिरला- बिरला दो बार विधायक और दो बार सांसद का चुनाव जीते हैं। वे वर्तमान में लोकसभा स्पीकर जैसे शीर्ष पद पर हैं। वे राजस्थान में पार्टी का एक प्रमुख चेहरा हैं, जो अनुभवी हैं और पार्टी के विभिन्न संगठनों में भी रहे हैं। लोकसभा स्पीकर होने का अर्थ ही है कि वे राष्ट्रीय नेतृत्व की पसंद हैं। हालांकि संवैधानिक पद पर होने से वे पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों से फिलहाल दूर ही नजर आते हैं।
वसुंधरा राजे- वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। पांच बार सांसद और पांच बार विधायक रहने के साथ एक बार केंद्र में मंत्री भी रही हैं। वे दो बार पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष और एक बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रही हैं। भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और फिर से प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए प्रयासरत हैं, हालांकि उन्हें फिलहाल भाजपा ने घोषित रूप से कमान नहीं सौंपी है। उनकी आयु करीब 71 वर्ष है।
सतीश पूनिया- वे भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष हैं और तीन साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन संभावना है कि उनके कार्यकाल को विस्तार मिल जाए। वे पहली बार विधायक बने हैं, लेकिन भाजपा में लगभग तीन दशक से सक्रिय हैं। हाल ही में अरुण सिंह की टिप्पणी से पूनिया के कद में बढ़ोतरी हुई है। पूनिया की आयु 57 साल है।
गजेन्द्र सिंह शेखावत- वे वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री हैं। वे लगातार दूसरी बार सांसद हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विश्वास हासिल है और वे एक मजबूत राजपूत चेहरा माने जाते हैं। गत चुनावों में उन्होंने जोधपुर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को हराया था। इस जीत के बाद शेखावत का कद अचानक प्रदेश और देश की राजनीति में तेजी से बढ़ा है। उनकी आयु 55 वर्ष है।
अर्जुनराम मेघवाल- वे लगातार तीसरी बार सांसद हैं और वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री हैं। वर्ष 2009 में राजनीति में आने से पहले वे आईएएस थे। वे भाजपा के टिकट पर 2009 में तब भी सांसद बनने में कामयाब रहे थे, जब 25 में से भाजपा को केवल 4 सीटों पर ही जीत मिली थी। आम लोगों में उनकी छवि साधारण और सरल व्यक्ति की है। उनकी आयु करीब 73 वर्ष है।
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