मेंढक के बच्चे पर 6 साल शोध, दावा; हल्दी व विटामिन ए से दुरुस्त की जा सकती हैं हृदय की उत्तक कोशिकाएं
हृदय रोगियों के लिए राहत की खबर है। अभी तक माना जाता था कि हृदय की क्षतिग्रस्त उत्तक कोशिकाओं को दुरुस्त नहीं किया...
Bhaskar News Network | Last Modified - Apr 02, 2018, 02:30 AM IST
हृदय रोगियों के लिए राहत की खबर है। अभी तक माना जाता था कि हृदय की क्षतिग्रस्त उत्तक कोशिकाओं को दुरुस्त नहीं किया जा सकता। लेकिन हनुमानगढ़ की बेटी किरणजीतकौर ने छह साल के शोध के बाद यह दावा किया है कि क्षतिग्रस्त उत्तक कोशिकाओं को हल्दी और विटामिन ए से दुरुस्त किया जा सकता है। किरण ने यह शोध टेडपोल यानी मेंढक के बच्चे पर किया था। शोध के दौरान न केवल इन कोशिकाओं को ठीक किया गया, बल्कि कृत्रिम रूप से पूर्ण विकसित हृदय उत्तक भी तैयार किए गए। इस शोध पर मेडिकल साइंस में और काम हो तो हार्ट अटैक की स्टेज पर आ चुके रोगियों को कई बेहतरीन विकल्प मिल सकते हैं।
बीकानेर में डूंगर कॉलेज के प्रो.ओपी जांगिड़ व प्रो. दिग्विजयसिंह शेखावत के निर्देशन में किरणजीत ने मेंढक के बच्चे के हृदय में मूलत: हल्दी और विटामिन ए से ही शोध किया था। हल्दी में करक्यूमिन नाम का पदार्थ पाया जाता है। यही वजह है कि हल्की चोट लगने पर प्राचीन काल में हल्दी का लेप लगाया जाता था। यहां किरण ने मेंढक के बच्चे पर हल्दी का इस्तेमाल किया तो इसी करक्यूमिन से उत्तक कोशिकाएं वापस रिकवर होने लगी। इसी तरह मेंढक के बच्चे के हृदय की उत्तक कोशिकाओं पर पहली बार विटामिन ए से शोध किया गया। यहां भी शोध में यही सकारात्मक परिणाम सामने आए कि विटामिन ए से उक्त कोशिकाओं को ठीक किया जा सकता है। यह भी पता लगा कि विटामिन ए से एक उत्तक की कोशिकाओं को दूसरे उत्तक की कोशिकाओं में भी बदला जा सकता है।
हार्ट रोगियों के फायदेमंद साबित हो सकता है शोध; अभी मेडिकल साइंस मानता है कि उत्तक कोशिकाएं ठीक नहीं हो सकती, हनुमानगढ़ की बेटी किरणजीतकौर का दावा- पूर्ण विकसित भी हो सकती हैं
मिट्टी का एक कण व दूषित हवा से ही बिगड़ जाता था शोध, इसलिए लग गए 6 साल
शोध के शुरुआती चरणों में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। पहली बड़ी परेशानी मेंढक के बच्चों के सैंपल इकट्ठे करना ही थी। इसके लिए डूंगर कॉलेज की जूलॉजी लैब में सैंपल इकट्ठे किए, लेकिन वहां संसाधन पर्याप्त ही नहीं थे। मिट्टी का एक कण अथवा प्रदूषित हवा आने से ही पूरा शोध बिगड़ जाता था। इसलिए यह रिसर्च कई बार दोहराई गई और इसे पूरा करने में छह साल का लंबा समय लग गया। किरण का शोध के लिए इसी विषय को चुनने का बड़ा कारण यही था कि हृदय की उत्तक कोशिकाओं के ठीक होने की संभावनाएं न के बराबर होती हैं। हार्ट अटैक होने पर तो यह कोशिकाएं और ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। किरण का दावा है कि मेडिकल साइंस में अभी तक कोई ऐसी दवा नहीं खोजी गई है, जिससे इन कोशिकाओं को ठीक किया जा सके। उल्लेखनीय है कि इससे पहले इसी टीम ने मेंढक की तीसरी आंख बनाने में भी सफलता हासिल की थी। यही शोध इस नई रिसर्च का आधार बना।
पांच चरणों से जानिए पूरे शोध को- 17 दिन में ही आने लगे सकारात्मक परिणाम
शोध में उपयोग किए मेंढक के बच्चे की स्टेज। दोनों का हृदय करीब एक सा होता है।
यह होती है हृदय उत्तक कोशिकाएं
मेंढक के बच्चे पर शोध करतीं किरणजीतकौर।
मेंढक के हृदय के वेंट्रिकल हिस्से को शोध के लिए कट किया गया।
कोशिका जीवन की मूल इकाई है। समान प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर उत्तक बनते हैं। हृदय में भी इसी प्रकार की हृदय उत्तक कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं में इलास्टिसिटी व लंबाई अिधक होती है। इसी कारण हृदय उत्तक काेशिकाएं तेजी खून की पंपिंग कर पाता हैं। ह्दय आघात की स्थिति हृदय उत्तक काेशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है।
मेंढक के बच्चे से अलग किए हुए टिश्यू में रिजनरेशन की प्रक्रिया शुरू की गई।
मेंढ़क के बच्चे के हृदय के टिश्यू को फिर कल्चर मीडिया पर ट्रांसफर किया गया।
मेंढ़क के बच्चे के हृदय के टिश्यू को फिर कल्चर मीडिया पर ट्रांसफर किया गया।
17 दिन बाद क्षतिग्रस्त िटश्यू को देखा गया तो उत्तक कोशिकाएं विकसित हो चुकी थी।
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हार्ट रोगियों के फायदेमंद साबित हो सकता है शोध; अभी मेडिकल साइंस मानता है कि उत्तक कोशिकाएं ठीक नहीं हो सकती, हनुमानगढ़ की बेटी किरणजीतकौर का दावा- पूर्ण विकसित भी हो सकती हैं
मिट्टी का एक कण व दूषित हवा से ही बिगड़ जाता था शोध, इसलिए लग गए 6 साल
शोध के शुरुआती चरणों में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। पहली बड़ी परेशानी मेंढक के बच्चों के सैंपल इकट्ठे करना ही थी। इसके लिए डूंगर कॉलेज की जूलॉजी लैब में सैंपल इकट्ठे किए, लेकिन वहां संसाधन पर्याप्त ही नहीं थे। मिट्टी का एक कण अथवा प्रदूषित हवा आने से ही पूरा शोध बिगड़ जाता था। इसलिए यह रिसर्च कई बार दोहराई गई और इसे पूरा करने में छह साल का लंबा समय लग गया। किरण का शोध के लिए इसी विषय को चुनने का बड़ा कारण यही था कि हृदय की उत्तक कोशिकाओं के ठीक होने की संभावनाएं न के बराबर होती हैं। हार्ट अटैक होने पर तो यह कोशिकाएं और ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। किरण का दावा है कि मेडिकल साइंस में अभी तक कोई ऐसी दवा नहीं खोजी गई है, जिससे इन कोशिकाओं को ठीक किया जा सके। उल्लेखनीय है कि इससे पहले इसी टीम ने मेंढक की तीसरी आंख बनाने में भी सफलता हासिल की थी। यही शोध इस नई रिसर्च का आधार बना।
पांच चरणों से जानिए पूरे शोध को- 17 दिन में ही आने लगे सकारात्मक परिणाम
शोध में उपयोग किए मेंढक के बच्चे की स्टेज। दोनों का हृदय करीब एक सा होता है।
यह होती है हृदय उत्तक कोशिकाएं
मेंढक के बच्चे पर शोध करतीं किरणजीतकौर।
मेंढक के हृदय के वेंट्रिकल हिस्से को शोध के लिए कट किया गया।
कोशिका जीवन की मूल इकाई है। समान प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर उत्तक बनते हैं। हृदय में भी इसी प्रकार की हृदय उत्तक कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं में इलास्टिसिटी व लंबाई अिधक होती है। इसी कारण हृदय उत्तक काेशिकाएं तेजी खून की पंपिंग कर पाता हैं। ह्दय आघात की स्थिति हृदय उत्तक काेशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है।
मेंढक के बच्चे से अलग किए हुए टिश्यू में रिजनरेशन की प्रक्रिया शुरू की गई।
मेंढ़क के बच्चे के हृदय के टिश्यू को फिर कल्चर मीडिया पर ट्रांसफर किया गया।
मेंढ़क के बच्चे के हृदय के टिश्यू को फिर कल्चर मीडिया पर ट्रांसफर किया गया।
17 दिन बाद क्षतिग्रस्त िटश्यू को देखा गया तो उत्तक कोशिकाएं विकसित हो चुकी थी।
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