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- Jodhpur 70 साल के रिटायर्ड डॉक्टर ने संपर्क पोर्टल को बनाया हथियार, घर बैठे हासिल किया 9 साल पुराना हक, सरकार को देने पड़े 1 लाख रु.
70 साल के रिटायर्ड डॉक्टर ने संपर्क पोर्टल को बनाया हथियार, घर बैठे हासिल किया 9 साल पुराना हक, सरकार को देने पड़े 1 लाख रु.
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग से 9 साल पहले रिटायर हुए 70 साल के एक डॉक्टर ने सेवा के दौरान लाभ से वंचित किए जाने पर अपने ही विभाग से संघर्ष शुरू किया। तीन महीने संघर्ष के बाद उन्होंने अपने हक के करीब 1 लाख रुपए की मंजूरी हासिल कर ली। उनका यह काम इसलिए अनूठा है क्योंकि बड़ी संख्या में कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के बाद सालों तक विभागों में अपनी पेंशन व सेवानिवृत्ति से पहले के सेवा लाभ के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाते रहते हैं। इन डॉक्टर ने इसकी बजाय जोधपुर में अपने घर से ही जैसलमेर, जयपुर व जोधपुर में पत्रावलियों को न केवल लालफीताशाही से बाहर निकलवाया, बल्कि काम अटकाने वाले कर्मचारियों को एसीबी तक अपनी शिकायत पहुंचाने का भय दिखाया। वे परिलाभ देने के आदेश जारी करवा कर ही माने। सरदारपुरा निवासी डॉ. ताराचंद संगतरमानी वर्ष 2009 में चिकित्सा अधिकारी, जैसलमेर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने वर्ष 2006 में पदोन्नति लेने से इनकार कर दिया था। कायदे से दो साल तक पदोन्नति से जुड़ा परिलाभ नहीं मिलता। यह अवधि वर्ष 2008 में ही पूरी हो गई थी और कुछ माह बाद वे सेवानिवृत्त हो गए। उन्हें कम अवधि के लिए ही सही, परिलाभ मिलना था जो एक लाख रुपए से अधिक था। विभाग उनके पदोन्नति छोड़ने की अवधि को अपने हिसाब से परिभाषित कर रहा था। इसके चलते मामला उलझता गया और नौ साल निकल गए।
डाॅ. ताराचंद संगतरमानी
बात नहीं बनी तो एसीबी का डर भी दिखाना पड़ा
डॉ. संगतरमानी की पदोन्नति की तारीख गलत तय की गई तो पेंशन प्रकरण के लिए गलत वैकल्पिक वेतन लिखकर अंतिम भुगतान प्रमाण पत्र भी गलत जारी कर दिया गया। वे विभाग में डाक से शिकायतें भेजते रहे, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही थी। संपर्क पोर्टल को लागू करवाने वाले प्रत्युष जोशी के संपर्क में आए और उनसे रास्ता पूछा। घर बैठे शिकायत दर्ज की। जवाब आया, लेकिन गलत। बताया गया कि कार्रवाई चल रही है। जिस दस्तावेज को आधार बनाकर कार्रवाई चलना बताया गया, वह बहुत पुराना था। उन्होंने रिमाइंडर भेजा, इसमें लिखा कि विभाग के अधिकारी और कर्मचारी तय समय पर कार्य नहीं कर रहे हैं। इस शिकायत को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को स्थानांतरित किया जाए। यह लिखते ही रेंगती फाइल जयपुर, जैसलमेर और जोधपुर के बीच दौड़ने लगी। अब एक लाख रुपए का भुगतान उन्हें जल्द मिलने जा रहा है। डॉ. संगतरमानी का कहना है कि उन्हें न तो कहीं पैसे देने पड़े और न ही किसी दफ्तर में जाकर अधिकारी व कर्मचारी से गुहार लगानी पड़ी।