राजस्थान हाईकोर्ट में 2 अप्रैल को होगी सुनवाई
संसदीय सचिव कैलाश वर्मा, डाॅ. विश्वनाथ मेघवाल, सुरेश रावत, ओम प्रकाश हुड़ला, भीमा भाई डामोर, लादू राम विश्नोई,...
Bhaskar News Network | Last Modified - Apr 01, 2018, 05:25 AM IST
संसदीय सचिव कैलाश वर्मा, डाॅ. विश्वनाथ मेघवाल, सुरेश रावत, ओम प्रकाश हुड़ला, भीमा भाई डामोर, लादू राम विश्नोई, शुत्रघ्न गौतम, नरेंद्र नागर, जितेंद्र गोठवाल व भैराराम सियोल को अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ सकता है। राजस्थान हाईकोर्ट में उनकी नियुक्ति को तत्काल रद्द किए जाने को लेकर एक याचिका विचाराधीन है। जिस पर सोमवार को सुनवाई होनी है। राज्य सरकार को अपना जवाब रखना है। महाधिवक्ता नरपतमल लोढ़ा ने भास्कर से बातचीत में कहा कि वे कोर्ट सरकार की तरफ से अपनी बात रखेंगे। निर्णय कोर्ट को करना है।
तर्क दिया जा रहा है कि देश में मंत्रिमंडल की तय सीमा से बाहर जाकर 10 संसदीय सचिव बनाए गए हैं। संविधान के आर्टिकल 164 (1ए) के मुताबिक राज्यों की विधानसभा में कुल विधायकों के 15 प्रतिशत और न्यूनतम 12 मंत्री रह सकते हैं। भारत के संविधान के बिजनेस रूल्स में संसदीय सचिवों को मंत्री माना गया है। प्रदेश में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित 30 मंत्री और 10 संसदीय सचिव हैं। इन संसदीय सचिवों को राज्यमंत्री का दर्जा और उनके समान वेतन भत्तों की सुविधाएं दी जा रही हैं।
सरकार चाहती है कि संसदीय सचिवों के मामले में कोर्ट से उसे समय मिल जाए। लेकिन सूत्रों के मुताबिक महाधिवक्ता ने सरकार के उच्च अधिकारियों को यह स्पष्ट कह दिया है कि इस मामले में सरकार का पक्ष बेहद कमजोर है और उसे संसदीय सचिवों के इस्तीफे ले लेने चाहिए। संसदीय सचिवों को लाभ के पद के आधार पर अयोग्य होने से बचाने के लिए सरकार पिछले साल ही विधानसभा में विधेयक पारित करवा चुकी है। विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि कोई विधायक संसदीय सचिव नियुक्त हो जाता है तो वह लाभ के पद के आधार पर अयोग्य नहीं होगा।
दस संसदीय सचिवों को देने पड़ सकते हैं इस्तीफे
अब क्या होगा? : कानून के हिसाब से संसदीय सचिवों की नियुक्ति अवैध है। मौजूदा संसदीय सचिवों को राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है। इन्हें राज्यमंत्रियों के समान ही स्टॉफ, वाहन, टेलीफोन, बिजली-पानी व वेतन भत्ते दिए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से संसदीय सचिवों को हटना पड़ेगा नहीं तो इनकी सदस्यता भी जा सकती है।
राजस्थान हाईकोर्ट में जनहित याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने बिमोलांगशु रॉय बनाम स्टेट ऑफ आसाम एंड अदर्स के फैसले में साफ कर दिया है कि राज्य सरकारों को संसदीय सचिव की नियुक्ति की पावर ही नहीं है। राजस्थान हाईकोर्ट में इस आदेश की पालना करवाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता के अनुसार राज्य सरकारें संसदीय सचिवों की परिकल्पना ही नहीं कर सकती है।
पिछली सरकार में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ कोर्ट गए थे भाजपा नेता
पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने अपने कार्यकाल में 13 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी। इनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए भाजपा के कालीचरण सराफ व अशोक परनामी कोर्ट चले गए। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली।
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सरकार चाहती है कि संसदीय सचिवों के मामले में कोर्ट से उसे समय मिल जाए। लेकिन सूत्रों के मुताबिक महाधिवक्ता ने सरकार के उच्च अधिकारियों को यह स्पष्ट कह दिया है कि इस मामले में सरकार का पक्ष बेहद कमजोर है और उसे संसदीय सचिवों के इस्तीफे ले लेने चाहिए। संसदीय सचिवों को लाभ के पद के आधार पर अयोग्य होने से बचाने के लिए सरकार पिछले साल ही विधानसभा में विधेयक पारित करवा चुकी है। विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि कोई विधायक संसदीय सचिव नियुक्त हो जाता है तो वह लाभ के पद के आधार पर अयोग्य नहीं होगा।
दस संसदीय सचिवों को देने पड़ सकते हैं इस्तीफे
अब क्या होगा? : कानून के हिसाब से संसदीय सचिवों की नियुक्ति अवैध है। मौजूदा संसदीय सचिवों को राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ है। इन्हें राज्यमंत्रियों के समान ही स्टॉफ, वाहन, टेलीफोन, बिजली-पानी व वेतन भत्ते दिए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से संसदीय सचिवों को हटना पड़ेगा नहीं तो इनकी सदस्यता भी जा सकती है।
राजस्थान हाईकोर्ट में जनहित याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने बिमोलांगशु रॉय बनाम स्टेट ऑफ आसाम एंड अदर्स के फैसले में साफ कर दिया है कि राज्य सरकारों को संसदीय सचिव की नियुक्ति की पावर ही नहीं है। राजस्थान हाईकोर्ट में इस आदेश की पालना करवाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता के अनुसार राज्य सरकारें संसदीय सचिवों की परिकल्पना ही नहीं कर सकती है।
पिछली सरकार में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ कोर्ट गए थे भाजपा नेता
पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने अपने कार्यकाल में 13 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी। इनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए भाजपा के कालीचरण सराफ व अशोक परनामी कोर्ट चले गए। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली।
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(News in Hindi from Dainik Bhaskar)
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