जीवन मंत्र डेस्क. हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा महत्त्वपूर्ण है। ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन स्त्रियाँ वट वृक्ष की पूजा कर के पूरे दिन व्रत रखती हैं। इसे वट सावित्री व्रत कहा जाता है। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है। सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा ये व्रत किया जाता है। इसी दिन यानी ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर गंगा स्नान कर के पूजा-अर्चना करने से मनोकामना पूरी होती है। इसी दिन से ही लोग गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिए भी निकलते हैं।
वट पूर्णिमा व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की सलामती और लंबी उम्र के लिए रखती हैं। पूर्णिमांत कैलेंडर यानी पूर्णिमा से शुरू होने वाल हिन्दू महीने में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर मनाया जाता है, जो शनि जयंती के साथ पड़ता है। वहीं अमांत कैलेंडर यानी अमावस्या से हिन्दू महीने की शुरुआत वाले कैलेंडर में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा पर मनाया जाता है, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है। इसलिए महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीय महिलाओं की तुलना में 15 दिन बाद वट सावित्री व्रत मनाती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने तप और सतीत्व की ताकत से मृत्यु के स्वामी भगवान यम को अपने पति सत्यवान के जीवन को वापस करने के लिए मजबूर किया। इसलिए विवाहित महिलाएं अपने पति की सलामती और लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत का पालन करती हैं।
वट पूर्णिमा व्रत की कथा
वट पूर्णिमा का व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य मिलता है। संतान और पति की उम्र बढ़ती है। इस व्रत के प्रभाव से अनजाने में किए गए पाप भी खत्म् हो जाते हैं। ये व्रत ज्येष्ठ माह में पड़ता है। इसलिए इस व्रत का महत्व और ज्यादा है। हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा महत्त्वपूर्ण है। इस दिन गंगा स्नान कर पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। इस दिन से ही लोग गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिये निकलते हैं।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.