आज के समय में तो कई मैच होते हैं, जहां आखिरी ओवर में टीम को छक्के से जीत मिलती है। लेकिन एक दौर था जब 250 के आसपास का स्कोर जीत की गारंटी होती थी। आज भी जब जावेद मियांदाद की बात होती है, 18 अप्रैल, 1986 का मैच याद आता है। मियांदाद बताते हैं कि मैं भारत से मेलबर्न में वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में हारने के बाद बहुत भावुक था। शारजाह में खेले जाने वाली ट्राई-सीरीज का फाइनल हमारे लिए इज्जत बचने का एक मौका था।
उन्होंने कहा- यह एक ऐसा मैच था, जिसे जीतने के बाद हम देश में मुंह दिखा सकते थे। लेकिन भारत ने 245 रन बना दिए। मियांदाद बताते हैं- आखिरी के 2 ओवर को छोड़कर वह पूरा मैच भारत का ही था। मैं आज भी मानता हूं कि 100 ओवर के उस मैच में 98 ओवर तक भारत ही जीत रहा था।
पाकिस्तान का टॉप ऑर्डर बल्लेबाज मुदस्सर, रमीज, मोहसिन और मलिक 110 रन पर वापस जा चुके थे। मुझे अंदाजा था कि अब जीत दूर होती जा रही है। लेकिन इमरान के 209 रन पर आउट होने के बाद हार पक्की हो चुकी थी। मैंने सोच लिया था कि आखिरी तक खेलूंगा और इज्जत से हारेंगे।
कादिर ने 34 रन बना कर मेरा साथ दिया। आखिरी ओवर में मेरे साथ तौसिफ था, जिससे मैं मन्नतें कर रहा था कि भाई तू बस विकेट बचा ले। मेरा शतक तो पूरा हो चुका था, लेकिन उसकी कोई खुशी नहीं थी। आखरी ओवर में 12 रन और सिर्फ एक विकेट। स्टेडियम में सन्नाटा था और समर्थक वापस जाने लगे थे। किसी तरह से हमने 5 गेंदों में 8 रन बनाए और किस्मत से स्ट्राइक मेरे पास थी।
आखिरी गेंद फुल टॉस थी, लेकिन मुझे आज भी याद नहीं है कि मेरे दिमाग में क्या चल रहा था। मैं उस गेंद के लिए आगे आकर एक अजीब से स्टाइल में खड़ा था और शायद वह शॉट एक रिफ्लेक्ट एक्शन था, जिसने बॉल को मैदान के बाहर पहुंचा दिया। मैं आज भी मानता हूं कि आखिरी ओवर कपिल देव से न करवाकर भारत ने हमारी जीत थोड़ी आसान बना दी थी।
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