भारतीय लड़कियों की टीम ने साउथ अफ्रीका में चल रहे विमेंस अंडर-19 वर्ल्ड कप के फाइनल में जगह बना ली है। भारत के शानदार खेल में टीम की ओपनर श्वेता सहरावत की बड़ी भूमिका रही है। श्वेता ने 6 मैचौं में 3 हाफ सेंचुरी की मदद से 292 रन बनाए हैं। औसत 146 की है और स्ट्राइक रेट 141 का। 6 पारियों में से 4 बार श्वेता नॉटआउट लौटी हैं।
आक्रामक अंदाज की बैटिंग के कारण श्वेता को लेडी सहवाग भी कहा जाने लगा है। 18 साल की श्वेता भी सहवाग की तरह दिल्ली की हैं और ताबड़तोड़ बल्लेबाजी में यकीन रखती हैं। श्वेता के दमदार खेल को जानने के लिए भास्कर ने उनके पिता संजय सहरावत से बात की।
उसका बैटिंग स्टाइल हमेशा से आक्रामक
संजय ने बताया - श्वेता वर्ल्डकप में खेलने को लेकर काफी उत्साहित थीं। उसका बैटिंग स्टाइल हमेशा से आक्रामक रहा। वर्ल्ड कप में वह अपना नेचुरल खेल ही दिखा रही है। टीम में सलेक्शन के बाद हमेशा कहती थी- साउथ अफ्रीका जाकर मैं तोड़ूंगी-फोड़ूंगी धूम मचाऊंगी। मैं चाहता हूं कि श्वेता फाइनल में भी विस्फोटक पारी खेल कर भारत को अंडर-19 वर्ल्ड कप की पहली चैंपियन बनाए।
बड़ी बहन को देखकर क्रिकेट में आई श्वेता
श्वेता की क्रिकेट जर्नी बताते हुए संजय कहते हैं- उनकी बड़ी बहन स्वाति अपने कजन से प्रेरित होकर क्रिकेट खेलने जाती थी। मैं स्वाति को सोनेट क्लब लेकर जाता था। मेरे साथ श्वेता भी जाती थी। तब वह 8 साल की थी। वह हमेशा जिद करती थी कि मैं भी खेलूंगी।
शुरुआत में मैंने ध्यान नहीं दिया। बाद में जब स्वाति वसंत कुंज क्रिकेट अकादमी में जाने लगी, तो मैंने श्वेता को एक बैट और टेनिस बॉल लाकर दिया। फिर वह भी एकेडमी जाने लगी।यह लड़कों की एकेडमी थी। एक दिन कोच ने एक लड़के को श्वेता को टेनिस बॉल से गेंदबाजी करने के लिए कहा। श्वेता ने शानदार शॉट खेला। इस शॉट ने श्वेता के पोटेंशियल को जाहिर कर दिया। उसकी बड़ी बहन स्वाति क्रिकेट छोड़कर बीटेक इंजीनियर बन गईं जबकि श्वेता का फोकस क्रिकेट पर ही रहा।
लड़कों के साथ ट्रेनिंग से हुई बल्लेबाजी शैली हुई आक्रामक
श्वेता के आक्रामक शैली पर संजय कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह अकादमी में लड़कों के साथ ट्रेनिंग करना रहा है। अकादमी में केवल 2 लड़कियां थीं। लगभग 4 साल तक वह लड़कों के साथ खेली और इससे उसका डर खत्म हो गया।
क्रिकेट खेलने पर रिश्तेदारों ने उठाए सवाल
संजय कहते हैं कि बेटियों के क्रिकेट खेलने पर शुरुआत में रिश्तेदारों ने सवाल उठाए थे। मैंने साफ शब्दों में कह दिया कि मेरी बेटियां जो करना चाहती हैं, वह करेंगी। मेरी मर्जी है। मैं भी खेल से जुड़ा रहा हूं। मैं वॉलीबॉल और कबड्डी खेलता था। बाद में जब बेटियां आगे बढ़ने लगी तो परिवार वालों के सवाल भी गायब हो गए।
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