खेलो इंडिया यूथ गेम्स में वाटर स्पोर्ट्स को पहली बार शामिल किया गया है। इसके तहत कयाकिंग, कैनोइंग और सलालम गेम हो रहे है। भोपाल के बड़े तालाब में कयाकिंग और कैनोइंग इवेंट में राजस्थान की टीम चर्चा में है। इसकी वजह है उदयपुर की एकेडमी और इसका संघर्ष।
इस एकेडमी के कोच निश्चय सिंह चौहान बताते हैं इसे शुरू कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण रहा। राजस्थान में वाटर स्पोर्ट्स एकेडमी के नाम से ही लोग भागते थे। उन्हें यकीन ही नहीं होता था। फंडिंग कहीं से मिल नहीं रही थी। इसके बाद शहर में चंदा जुटाकर इस एकेडमी को शुरू किया गया। आज इस एकेडमी के बच्चे देशभर में हुए अलग-अलग इवेंट्स में 70 से ज्यादा नेशनल मेडल जीत चुके हैं। खेलो इंडिया यूथ गेम्स में राजस्थान के तीन खिलाड़ियों ने कैनोइंग और कयाकिंग में हिस्सा लिया। तीनों मेडल जीतने में सफल रहे।
भास्कर ने निश्चय से अब तक के सफर और आगे की चुनौतियों पर बात की। पढ़िए...
एकेडमी शुरू करने का विचार कैसे आया?
मध्य प्रदेश ने वाटर स्पोर्ट्स एकेडमी एसोसिएशन बनाया था। इसके बाद मैं और हमारे सेक्रेटरी दिलीप सिंह चौहान भोपाल आए। यहां वाटर स्पोर्ट्स देखकर सोचा कि इसे उदयपुर भी लाया जाए। जिस तरह भोपाल झीलों का शहर है उसी तरह उदयपुर भी झीलों के लिए मशहूर है। हमने शुुरुआत में अपने पैसे लगाए। फिर शहर से चंदा जुटाया। स्पॉन्सर्स के जरिए भी पैसा जुटाया। ठीक-ठाक रकम इकट्ठा हो गई गई तो भोपाल से चार बोट खरीदीं। 2011 में आखिरकार उदयपुर में वाटर स्पोर्ट्स एकेडमी शुरू कर दी।
स्विमिंग पूल से की शुरुआत
एकेडमी शुरू होने के बाद कई तरह की परेशानियां आईं। राजस्थान सरकार ने झील में प्रैक्टिस की मंजूरी देने से ही इनकार कर दिया। जरा सोचिए, हम क्या करते? तब हमने स्विमिंग पूल में ट्रेनिंग की। इसके बाद हमारे प्लेयर्स ने राज्य से बाहर के टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। बाद में हमने राज्य सरकार को इस स्पोर्ट के फायदे और भविष्य के बारे में बताया। कहते हैं, अंत भला तो सब भला। आखिरकार सरकार ने हमारी जरूरत और दर्द को समझा। हमें उसी उदयपुर झील में प्रैक्टिस करने की इजाजत मिल गई।
एकेडमी में 40 से ज्यादा बच्चे
उदयपुर में राजस्थान की इकलौती वाटर स्पोर्ट्स एकेडमी है। हमारे पास 40 से ज्यादा बच्चे है। करीब 30 खिलाड़ी मेडल ला चुके है। अब तक एकेडमी के पास 70 से ज्यादा नेशनल मेडल हैं। हमारे 5 प्लेयर्स तो इंटरनेशनल इवेंट्स में पार्टिसिपेट कर चुके हैं।
इंडस्ट्रीज से स्पॉन्सरशिप
पैसे जुटाने के लिए हमारी एकेडमी सीमेंट और मार्बल कंपनीज से स्पॉन्सशिप हासिल करती है। हम अपने कारोबारियों को चिट्ठी लिखते हैं और उनसे अपील करते हैं कि वो एकेडमी और इसके प्लेयर्स की बेहतरी के लिए स्पॉन्सर बनें। वो ऐसा करते भी हैं।
भारतीय बोट से मुश्किल
एकेडमी में बच्चे भारत में बनी बोट्स से प्रैक्टिस करते है। इससे आगे जाकर दिक्कत होती है। दरअसल, बड़े टूर्नामेंट्स में विदेशी बोट इस्तेमाल की जातीं हैं। इसकी वजह ये है कि ये काफी हल्की होती हैं और इन्हें संभालने की टेक्नीक भी अलग और आसान होती है। हमारे प्लेयर्स जब भारत में बनी बोट्स से प्रैक्टिस करके किसी टूर्नामेंट में आते हैं, और यहां उन्हें विदेश बोट मिलती हैं तो जाहिर है कि उन्हें बैलेंसिग, डायनामिक्स और शेप से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, ये बात भी सही है कि विदेशी बोट महंगी होती हैं और इसे हमारी एकेडमी अफोर्ड नहीं कर सकती।
हमने कई बार सरकार से विदेशी बोट मुहैया कराने की गुजारिश की, लेकिन अब तक कामयाबी नहीं मिली। सरकार मदद करे तो ये तय है कि हमारे प्लेयर्स ज्यादा मेडल ला सकते हैं।
पढ़ाई के साथ खेल, ये बड़ी चुनौती
खिलाड़ियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, खेल के साथ पढाई। इसे बैलेंस करने के लिए एकेडमी में सुबह 4 बजे से मॉर्निंग सेशन भी होता है। इससे बच्चे सुबह प्रशिक्षण ले सकें और फिर पढाई पर भी ध्यान दे सकें।
हर्षवर्धन ने दिलाया राजस्थान को पहला सिल्वर, वजन ज्यादा होने की वजह से स्विमिंग शुरू की, अब कयाकिंग में मेडल
खेलो इंडिया यूथ गेम्स के चौथे एडिशन में बुधवार को हर्षवर्धन ने राजस्थान को पहला मेडल दिलाया। उन्होंने K1 1000 मीटर में सिल्वर जीता। हर्षवर्धन ने हमसे कहा- मेरा वजन पहले ज्यादा था। शेप में आने के लिए स्विमिंग शुरू की। नेशनल लेवल का स्विमर बना। फिर 2020 में कोरोना की वजह से पूल बंद हो गए। तब मैंने कयाकिंग और कैनोइंग स्पोर्ट शुरू किया। सिल्वर के अलावा हर्षवर्धन के पास इस स्पोर्ट में चार नेशनल मेडल भी हैं।
हर्षवर्धन के मेडल में मां का अहम योगदान
हर्षवर्धन ने कहा - मैं एकेडमी और कोच के अलावा इस मैडल में मां बहुत अहम योगदान मानता हूं। मां मेरी सेहत का हमेशा ख्याल रखती है और हर दिन मुझे डाइट बना कर देती है, जिससे मैं हर टूर्नामेंट में अपना बेस्ट देता हूं।
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